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पुस्तक-प्रकाशन

को स्फोट करें और चाहे जितने हरमों का हाल लिखे उसके उपन्यास से कभी यथेष्ट आनन्द न मिलेगा। अतएव लेखकों को चाहिये कि अच्छे-अच्छे उपन्यास लिखें और प्रकाशक उनके गुण-दोषों पर अच्छी तरह विचार करके उन्हें प्रकाशित करें।

यदि प्रकाशक अपने व्यवसाय को अच्छी तरह जानता है, यदि वह लोगों की रुचि को पहचानता है, यदि उसे अपने लाभ के साथ अपने देश और अपने देशवासियों के लाभ का भी कुछ खयाल है तो वह अच्छे-अच्छे भी उपन्यास प्रकाशित कर रुपया पैदा कर सकता है। यदि वह अच्छे लेखकों को उत्साहित करेगा तो वे अच्छी पुस्तकें उसके लिए जरूर लिखेंगे। इसमें उसे कुछ अधिक खर्च करना पड़ेगा। परन्तु बहुजन मान्य पुस्तक प्रकाशित करने से लाभ उसे अधिक होगा। और यदि थोड़ा ही लाभ हो, तो भी उसे यह सोचकर सन्तोष करना चाहिये कि मैंने एक अनुपयोगी और दुर्नीती-वर्द्धक पुस्तक का प्रचार करके अपने देश भाइयों की रुचि को नहीं खराब किया।

हर्ष की बात है, कुछ प्रकाशकों का ध्यान अब अच्छी-अच्छी देशोपयोगी पुस्तकों के प्रचार की तरफ गया भी है। हिन्दी और हिन्दुस्तान के हितचिन्तक पण्डित माधवराव सप्रे, बी॰ ए॰ ने नागपुर में एक कम्पनी स्थापित की है। उसका उद्देश हिन्दी में अच्छे-अच्छे ग्रन्थ प्रकाशित करने का है। उसके प्रबन्ध से हिन्दी ग्रन्थमाला नाम की एक मासिक पुस्तक निकलने लगी है, उसमें हिन्दी के अच्छे-अच्छे ग्रंथ प्रकाशित करने का है। उसके प्रबन्ध से हिन्दी ग्रन्थमाला नाम की एक मासिक पुस्तक निकलने लगी है, उसमें हिन्दी के अच्छे-अच्छे ग्रन्थ निकलने शुरू हुए हैं। यदि हिन्दी पढ़ने वाले उस पर कृपा करते रहें तो उसके द्वारा हिन्दी के उत्तमोत्तम ग्रन्थों के प्रचार की बहुत बड़ी आशा है।