'शकुन्तला' पर यदि कोई उपन्यास लिखा जाय, तो वह कितना मर्म-
स्पर्शी होगा, यह बताने की जरूरत नही ।
रचना-शक्ति थोडी-बहुत सभी प्राणियो मे रहती है। जो उसमें अभ्यस्त हा चुके है, उन्हे तो फिर झिझक नहीं रहती-कलम उठाया और लिखने लगे। लेकिन नये लेखको को पहले कुछ लिखते समय ऐसी झिझक होती है मानो वे दरिया मे कूदने जा रहे हो । बहुधा एक तुच्छ सी घटना उनके मस्तिष्क पर प्रेरक का काम कर जाती है । किसी का नाम सुनकर, काई स्वप्न देखकर, कोई चित्र देखकर, उनकी कल्पना जाग उठती है । किसी व्यक्ति पर किस प्रेरणा का सब से अधिक प्रभा पड़ता है, यह उस व्यक्ति पर निर्भर है । किसी की कल्पना दृश्य-विषय से उभरती है,किसा की गन्ध से, किसी की श्रवण से।किसी को नये,सुरम्य स्थान की सैर से इस विषय मे यथेष्ट सहायता मिलती है। नदी के तट पर अकेले भ्रमण करने से बहुवा नयी-नयी कल्पनाएँ जाग्रत होती हैं। ।
ईश्वरदत्त शक्ति मुख्य वस्तु है । जब तक यह शक्ति न होगी जप
देश, शिक्षा, अभ्यास सभी निष्फल जायगा । मगर यह प्रकट कैसे हो
कि किसमे यह शक्ति है, किसमे नही ? कभी इसका सबूत मिलने मे
बरसो गुजर जाते है और बहुत परिश्रम नष्ट हो जाता है। अमेरिका के
एक पत्र सपादक ने इसकी परीक्षा करने का नया ढग निकाला है।
दल के दल युवको मे से कौन रत्न है और कौन पाषाण ? वह एक
कागज के टुकडे पर किसी प्रसिद्ध व्यक्ति का नाम लिख देता है और
उम्मेदवार को वह टुकड़ा देकर उस नाम के सम्बन्ध मे ताबड़तोड़
प्रश्न करना शुरू करता है-उसके बालो का रंग क्या है ? उसके
कपड़े कैसे है ? कहाँ रहती है ? उसका बाप क्या काम करता है ?जीवन
मे उसकी मुख्य अभिलाषा क्या है ? आदि । यदि युवक महोदय ने
इन प्रश्नो के संतापजनक उत्तर न दिये, तो उन्हे अयोग्य समझकर
बिदा कर देता है । जिसकी निरीक्षण-शक्ति इतनो शिथिल हो, वह