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रूचि की विभिन्नता


कर कि हिन्दुस्तानियों को गम्भीर विषयों से अधिक रुचि है, यह कहा जा सकता है कि हमारी रुचि अब प्रौढ हो रही है। लेकिन हिन्दी के प्रकाशकों से पूछा जाय, तो शायद वे कुछ और ही कहें। हिन्दी में गम्भीर साहित्य की पुस्तकें बहुत कम बिकती हैं। इसका कारण यही हो सकता है कि जिन्हें गम्भीर साहित्य से प्रेम है, वे अंग्रेजी पुस्तकें खरीदते हैं। कथा-कहानियाँ कुछ ज्यादा बिक जाती हैं शायद इसलिए कि भारतीय जीवन का चित्रण हमें अंग्रेजी पुस्तकों में नहीं मिलता, नहीं शायद कोई हमारे हिन्दी उपन्यास और कहानियों को भी न पूछता। एक कारण यह भी हो सकता है कि उपन्यास और कहानियों के लिए किसी विशेष योग्यता की जरूरत नहीं समझी जाती। जिसके हाथ में कलम है वही उपन्यास लिख सकता है। लेकिन दर्शन या अर्थशास्त्र या ऐतिहासिक विवेचन पर कलम उठाने के लिए विद्वत्ता चाहिए। और जो लोग विद्वान हैं, वे अंग्रेजी में लिखना ज्यादा पसन्द करते हैं, क्योकि अंग्रेजी का क्षेत्र विस्तृत है। वहाँ यश भी अधिक मिलता है और धन भी।

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