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जापान में पुस्तकों का प्रचार

हैं, उनमे भी पहुँच जाइए तो आपको मालूम होगा कि एक हजार माह- वार खर्च करके भी यह लोग रहना नही जानते। न कोई बजट है, न कोई व्यवस्था । अललटप्पू खर्च हो रहा है । जरूरी चीजो की अोर किसी का ध्यान नहीं है, बिना जरूरत की चीजे ढेरो पड़ी हुई हैं। कपड़े कीड़े खा रहे है, फर्नीचर मे दीमक लग रही है, किताबो मे नमी के कारण फफूदी लग गई है। किसी की निगाह इन बातो की तरफ नहीं जाती। नौकरो का वेतन नहीं दिया जाता । मगर कपडे बेजरूरत खरीद लिये जाते है। यह कुव्यवस्था इसीलिए है कि इस विषय मे हम उदासीन है।

जापान के अधिकाश साहित्यकार टोकियो में रहते है। उसमे छः सौ से अधिक ऐसे है जिनके नाम जापान भर मे प्रसिद्ध हैं। मगर जापान मे लेखकों को ज्यादा पुरस्कार नहीं मिलता।

जापान मे साहित्य रचना के भिन्न-भिन्न आदर्श हैं। कोई स्कूल जन-साधारण की रुचि की पूर्ति करना ही अपना ध्येय मानता है। तीश् बंगी स्कूल सबसे प्रसिद्ध है। ये लोग पुरानी कथाआ को नई शैली मे लिख रहे हैं, यहाँ तक कि विश्वविद्यालयो मे भी इसी रंग के अनुयायी अधिक हैं।

एक दूसरा स्कूल है जो कहता है, हम जन साधारण के लिए पुस्तकें नहीं लिखते, हमारा ध्येय साहित्य की सेवा है। इनका आदर्श है कला कला के लिए।

एक तीसरा दल है जो केवल दार्शनिक विषयो का ही भवन है। यह लोग अपनी गल्पों के प्लाट भी दर्शन और विज्ञान के तत्वो से बनाते हैं। उनके चरित्र भी प्रायः वास्तविक जीवन से लिये जाते है।

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