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साहित्य का उद्देश्य

लोक निन्दा पर विश्वास करे । किन्तु यदि किसी के गुण, किसी की मौलिकता, किसी की उच्चता की चर्चा सुनता हूँ, तब मै उसके लिए प्रमाण वसूल करने के इजहार लेना चाहता हूँ।'

और भाषण के अन्तिम शब्द तो बड़े ही मर्मस्पर्शी है :

'हम बडे हों या छोटे, हमने घर घर या व्यक्ति व्यक्ति मे मरने का डर बोया है । हमारे लिए मार डालना ही गुनाह नहीं, मर जाना गुनाह हो गया है......आज के साहित्यिक चिन्तक पर जिम्मेवारी है कि वह पुरुषार्थ को दोनो हाथों मे लेकर जीने का खतरा और मरने का स्वाद अपनी पीढ़ी मे बोये । यह पुरुषार्थ शस्त्रधरो से नहीं हो सकता, यह तो कलम के धनियों ही के करने का काम है।'

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