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साहित्य का उद्देश्य


एक ही स्थल पर एक ही भाषा द्वारा भारतीयो को मिलने लगे,तो जरूर यह एकता स्वरूप पाकर दृढ़ बनेगी। एक ही जगह मे और एक ही भाषा मे समस्त प्रान्तों का साहित्य संगृहीत होने से प्रत्येक साहित्य को स्फूर्ति और वेग मिले बिना न रहेगे । कुछ लोगो को यह खौफ है कि इससे प्रान्तीय साहित्यों की खूब या सरसता चली जायगी । कई भाइयों को इस प्रयत्न मे प्रान्तीय गौरव के भंग होने के लक्षण दीखते हैं, पर गहराई के साथ सोचें, तो यह भय बिना आधार का लगता है । प्रान्तीय साहित्य एक दूसरे के साथ बराबर की कतार में खड़े हुए एक दूसरे का माप करते रहे, और एक दूसरे के सम्पर्क से नये आदेश, नई प्रेरणा, नई स्फूर्ति पाते रहे, क्या इससे किसी भी साहित्य को कोई आधात पहुँच सकता है ? अाज जो कई जगह हमारा साहित्य संकुचित होता हुआ दीख रहा है, वह प्रवाहित हो उठेगा । कालिदास, होमर, गेटे या शेली, ये मनुष्य मात्र को सरसता का पाठ सिखाते है। और जब तक हमारा प्रान्तीय साहित्य विशाल क्षेत्र मे न विचरण करे, तब तक विश्व साहित्य मे स्थान प्राप्त करने के लायक नहीं होगा । अतः इसमे सन्देह नहीं, इन प्रयत्नो के परिणामस्वरूप साहित्य सकुचित होने के बदले और भी अधिक रमणीयता तथा विशालता प्राप्त करेगा।

कुछ साहित्यकार कहते है, कि ये प्रयत्न हिन्दी मे किसलिए ? अंग्रेजी मे क्यो नहीं ?

यह पूर्वोक्त प्रश्न, यह बेढंगा सवाल, आज ई० स० १९३५ मे भी पूछा जा सकता है, इससे हमे आश्चर्य और दुःख होता है । इस देश में क्या इतनी शक्ति नहीं रही, और राष्ट्रभक्ति इतनी निस्सत्व हो गई है कि भारत को विदेशियो की भाषा द्वाग अपने प्राण व्यक्त करने के लिए मजबूर होना पड़े। और अगर यह बात ठीक है, तो हमे लज्जा के मारे डूब मरना चाहिए । अग्रेजी सुन्दर भाषा है, उसके साहित्य मे अमर सरसता समाई हुई है, उसकी प्रेरणा के सहारे हमारा बहुत सा आधुनिक साहित्य तिर्मित हुअा है; परन्तु यह भाषा कितने लोगों की समझ मे