प्रचलित है परन्तु फिर भी उनके यहा इसका प्रयोग वर्जित है। इसके
स्थान पर वे 'प्रार्थना पत्र' ही लिखना चाहते है, यद्यपि जन-साधारण
इसका मतलब बिल्कुल ही नही समझता । 'इस्तीफा' को वे किसी तरह
मंजूर नहीं कर सकते और इसके स्थान पर 'त्याग-पत्र' रखना चाहते हैं।
'हवाई जहाज' चाहे कितना ही सुबोध क्यो न हो, परन्तु उन्हे 'वायुयान'
की सैर ही पसन्द है। उर्दूवाले तो इस बात पर और भी अधिक लटू
है । वे 'खुदा' को तो मानते है, परन्तु 'ईश्वर' को नहीं मानते । 'कुसूर'
तो वे बहुत-से कर सकते है, परन्तु 'अपराध' कभी नहीं कर सकते।
'खिदमत' तो उन्हे बहुत पसन्द है, परन्तु 'सेवा' उन्हे एक श्राख भी
नही भाती । इसी तरह हम लोगो ने उर्दू और हिन्दी के दो अलग-
अलग कैम्प बना लिये है । और मजाल नहीं कि एक कैम्प का आदमी
दूसरे कैम्प मे पैर भी रख सके । इस दृष्टि से हिन्दी के मुकाबले मे उर्दू
मे कहीं अधिक कड़ाई है । हिन्दुस्तानी इस चारदीवारी को तोड़कर दोनों
मे मेल-जोल पैदा कर देना चाहती है, जिसमे दोनो एक दूसरे के घर
बिना किसी प्रकार के संकोच के आ-जा सकें और वह भी सिर्फ मेहमान
की हैसियत से नहीं, बल्कि घर के आदमी की तरह । गारसन डि टासी
के शब्दो मे उर्दू और हिन्दी के बीच मे कोई ऐसी विभाजक रेखा नहीं
खीची जा सक्ती, जहाँ एक को विशेष रूप से हिन्दी और दूसरी को उर्दू
कहा जा सके। अंग्रेजी भाषा के भी अनेक रग है। कही लैटिन और
यूनानी शब्दो की अधिकता होती है, कहीं ऐग्लोसैक्सन शब्दो की ।
परन्तु हैं दोनो ही अंग्रेजी । इसी प्रकार हिन्दी या उर्दू शब्दो के विभेद
के कारण दो भिन्न भिन्न भाषाएँ नही हो सकतीं । जो लोग भारतीय
राष्ट्रीयता का स्वप्न देखते हैं और जो इस सास्कृतिक एकता को दृढ़
करना चाहते हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे लोग हिन्दुस्तानी का
निमन्त्रण ग्रहण करें, जो कोई 'नयी भाषा नहीं है बल्कि उर्दू और हिन्दी
का राष्ट्रीय स्वरूप है।
संयुक्त प्रान्त के अपर प्राइमरी स्कूलों मे चौथे दरजे तक इसी मिश्रित