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साहित्य का उद्देश्य
अपरिचित है। हम दोनों ही के लिए दोनो लिपियो का और दोनो भाषाओ का ज्ञान लाजमी है । और जब हम जिन्दगी के पद्रह साल अँगरेजी हासिल करने मे कुरबान करते हैं तो क्या महीने-दो-महीने भी उस लिपि और साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने मे नहीं लगा सकते, जिस पर हमारी कौमी तरक्की ही नहीं, कौमी जिन्दगी का दारोमदार है ?
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आर्यसमाज के अन्तर्गत आर्यभाषा सम्मेलन के वार्षिक अवसर पर लाहौर मे दिया गया भाषण ।