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साहित्य का उद्देश्य


और अज्ञानता के कारण जो बदगुमानी और सन्देह है,वह दूर हो जायगा। चूकि इस वक्त भी तालीम का सीगा हमारे मिनिस्ट्रो के हाथ मे है और करिकुलम मे इस तब्दीली से कोई जायद खर्च न होगा, इसलिए अगर दोनो भाई मिलकर यह मुतालबा पेश करें तो गवर्नमेट को उसके स्वीकार करने मे कोई इन्कार न हो सकेगा । मै यकीन दिलाना चाहता हूँ कि इस तजवीज मे हिन्दी या उर्दू किसी से भी पक्षपात नहीं किया गया है । साहित्यकार के नाते हमारा यह धर्म है कि हम मुल्क में ऐसी फिजा, ऐसा वातावरण लाने की चेष्टा करे जिससे हम जिन्दगी के हरेक पहलू मे दिन-दिन आगे बढे । साहित्यकार पैदाइश से सौन्दर्य का उपासक होता है। वह जीवन के हरेक अङ्ग मे, जिन्दगी के हरेक शोबे मे, हुस्न का जलवा देखना चाहता है । जहाँ सामञ्जस्य या हम-अाहेंगी है वही सौन्दर्य है, वही सत्य है, वही हकीकत है। जिन तत्वों से जीवन की रक्षा होती है, जीवन का विकास होता है, वही हुस्न है । वह वास्तव मे हमारी आत्मा की बाहरी सूरत है। हमारी प्रात्मा अगर स्वस्थ है, तो वह हुस्न की तरफ बेअख्तियार दौड़ती है। हुस्न मे उनके लिए न रुकने- वाली कशिश है । और क्या यह कहने की जरूरत है कि नेफाक और हसद, और सन्देह और संघर्ष, यह मनोविकार हमारे जीवन के पोषक नहीं बल्कि घातक हैं, इसलिए वह सुन्दर कैसे हो सकते हैं ? साहित्य ने हमेशा इन विकारो के खिलाफ आवाज उठायी है। दुनिया से मानव-जाति के कल्याण के जितने अान्दोलन हुए है, उन सभी के लिए साहित्य ने ही जमीन तैयार की है, जमीन ही नहीं तैयार की, बीज भी बोये और उसकी सिंचाई भी की। साहित्य राजनीति के पीछे चलनेवाली चीज नहीं, उसके आगे-आगे चलनेवाला 'एडवास गार्ड' है । वह उस विद्रोह का नाम है जो मनुष्य के हृदय मे अन्याय, अनीति, और कुरुचि से होता है। और लेखक अपनी कोमल भावनाओं के कारण उस विद्रोह की जबान बन जाता है। और लोगों के दिलों पर भी चोट लगती है, पर अपनी व्यथा को, अपने दर्द को दिल हिला देनेवाले शब्दों मे वे जाहिर