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कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार


अनाज रख लिया जात हे और पिलले पहर ले उठकर औरते चक्की पीसने बैठ जाती है।'

इस पेराग्राफ को मे हेन्दुरानी का बहुत अच्छा नमूना समझता हूँ, जिसे सनमाने में किसी भी हिन्दी समझनेवाले अादमी वो जरा भी मुस्किल न पडेगी। अब में उर्दू का दूसरा पेरा देता हूँ-

'उसकी वफा का जजया सिर्फ जिन्दा इस्तियो के लिए महदूद न था । वह एसः परवाना था, कि न सिर्फ जलतो हुई शमा पर निसार होती थी, बल्कि बुझी हुई शमा पर भी खुद को कुरबान कर देता थी । अगर मोत का जालिम हाथ उसके रफ़क हयात को छीन लेता था तो वह बाकी ज़िन्दगी उसके नाम और उसकी याद मे बसर कर देती थी। एक की कहलाने और एक की हो जाने के बाद फिर दूसरे किसी शख्स का ख़याल भी उसके वफापरस्त दिल मे भूलकर भी न उठता था।'

अगर पहले जुमले को हम इस तरह लिखे -'वह सिर्फ जिन्दा आदमियो क साथ वफा न करती थी' और 'वफापरस्त' की जगह 'प्रेमी' 'रफीक हयात' की जगह 'जीवन साथी' का व्यवहार करें, तो वह साफ हिन्दुस्तानी बन जायगी और फिर उसके समझने में किसी को दिक्कत न होगी । अब मै एक हिन्दी-पत्र से एक पैरा नकल करता हूँ-

'मशीनो के प्रयोग से आदमियो का बेकार होना और नये-नये अाविष्कारो से बेकारी का बढ़ना, फिर बाजार की कमी, रही-सही कमी को और भी पूरा कर देती है । बेकारी की समस्या को अधिक भयकर रूप देने के लिए यही काफी था; लेकिन इसके ऊपर संसार में हर दसवें साल की जन-गणना देखने से मालूम हो रहा है कि जन-सख्या बढ़ती ही जा रही है । पूँजीवाद कुछ लोगो को धनी बनाकर उसके लिए सुख और विलास की नयी-नयी सामग्री जुटा सकता है।'

यह हिन्दी के एक मशहूर और माने हुए विद्वान् की शैली का नमूना है, इसमे'प्रयोगआविष्कारसमस्या' यह तीन शब्द ऐसे है, जो उर्दूदाँ लोगो को अपरिचित लगेंगे । बाकी सभी भाषाओ के बोलनेवालो की

फा०१२