जा रहा है,उसका रूप क्या है ?हमे खेद है कि अभी तक हम उसकी
कोई खास सूरत नहीं बना सके है, इसलिए कि जो लोग उसका रूप
बना सकते थे, वे अंग्रेजी के पुजारी थे और है; मगर उसकी कसौटी
यही है कि उसे ज्यादा-से-ज्यादा आदमी समझ सके । हमारी कोई
सूबेवाली भाषा इस कसौटी पर पूरी नहीं उतरती। सिर्फ हिन्दुस्तानी
करती है; क्योकि मेरे ख्याल मे हिन्दी और उर्दू दोनो एक जबान
है। क्रिया और कर्ता, फेल और फाइल, जब एक हैं, तो उनके एक
होने मे कोई सन्देह नहीं हो सकता । उर्दू वह हिन्दुस्तानी जबान है,
जिसमे फारसी अरबी के लफ्ज ज्यादा हो, उसी तरह हिन्दी वह
हिन्दुस्तानी है, जिसमे संस्कृत के शब्द ज्यादा हों । लेकिन जिस तरह
अंग्रेजी मे चाहे लैटिन या ग्रीक शब्द अधिक हों या एंग्लोसेक्सन,
दोनो ही अंग्रेजी है, उसी भॉति हिन्दुस्तानी भी अन्य भाषाओ के शब्दो
के मिल जाने से कोई भिन्न भाषा नहीं हो जाती । साधारण बातचीत
मे तो हम हिन्दुस्तानी का व्यवहार करते ही है। थोड़ी-सी कोशिश से
हम इसका व्यवहार उन सभी कामो मे कर सकते है, जिनसे जनता
का सम्बन्ध है । मै यहाँ एक उर्दू पत्र से दो-एक उदाहरण देकर
अपना मतलब साफ कर देना चाहता हूँ-
'एक जमाना था, जब देहातो मे चरखा और चक्की के बगैर कोई
घर खाली न था । चक्की चूल्हे से छुट्टी मिली, तो चरखे पर सूत
कात लिया । औरते चक्की पीसती थीं, इससे उनकी तन्दुरुस्ती बहुत
अच्छी रहती थी, उनके बच्चे मजबूत और जफाकश होते थे । मगर अब
तो अंग्रेजी तहजीब और मुत्राशरत ने सिर्फ शहरो में ही नहीं देहातो
मे भी काया पलट दी है | हाथ की चक्की के बजाय अब मशीन का
पिसा हुआ आटा इस्तेमाल किया जाता है । गॉवो मे चक्की न रही,
तो चक्की पर गीत कौन गाये ? जो बहुत गरीब है, वे अब भी घर
की चक्की का आटा इस्तेमाल करते है। चक्की पीसने का वक्त अमूमन
रात का तीसरा पहर होता है । सरे शाम ही से पीसने के लिए