यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६८
साहित्य का उद्देश्य
पन्थ की विजय उसके प्रचारको के आदर्श-जीवन पर ही निर्भर होती है। अयोग्य व्यक्तियो के हाथों मे ऊँचे-से-ऊँचा उद्देश्य भी निंद्य हो सकता है। मुझे विश्वास है, आप अपने को अयोग्य न बनने देंगे।
_________
दक्षिण-भारत हिन्दी-प्रचार सभा, मद्रास के चतुर्थ उपाधिवितरणोत्सव के अवसर पर, २६ दिसम्बर, १९३४ ई० को दिया गया दीक्षान्त भाषण ।