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राष्ट्रभाषा हिन्दी और उसकी समस्याएॅ


हारेगे,कभी जीतेगे,लेकिन स्वराज्य आपसे उतनी ही दूर रहेगा, जितनी दूर स्वर्ग है । अंग्रेजी मे आप अपने मस्तिष्क का गूदा निकालकर रख दे लेकिन आपकी आवाज मे राष्ट्र का बल न होने के कारण कोई आपकी उतनी परवाह भी न करेगा, जितनी बच्चो के रोने की करता है। बच्चो के रोने पर खिलौने और मिठाइयाँ मिलती हैं। वह शायद आपको भी मिल जावे, जिसमे आपकी चिल्ल-पो से माता-पिता के काम मे विन न पडे । इस काम को तुच्छ न समझिये । यही बुनियाद है, आपका अच्छे से अच्छा गारा, मसाला, सीमेट और बड़ी से बड़ी निर्माण-योग्यता जब तक यहाँ खर्च न होगी, आपकी इमारत न बनेगी। घरौदा शायद बन जाय, जो एक हवा के झोके मे उड़ जायगा। दरअसल अभी हमने जो कुछ किया है, वह नहींके बराबर है। एक अच्छा-सा राष्ट्र-भाषा का विद्यालय तो हम खोल नहीं सके । हर साल सैकड़ो स्कूल खुलते हैं, जिनकी मुल्क को बिलकुल जरूरत नहीं । 'उसमानिया विश्व विद्यालय' काम की चीज है, अगर वह उर्दू और हिन्दी के बीच की खाई को और चौड़ी न बना दे । फिर भी मै उसे और विश्व-विद्यालयो पर तरजीह देता हूँ। कम से कम अंग्रेजी की गुलामी से तो उसने अपने को मुक्त कर लिया। और हमारे जितने विद्यालय है सभी गुलामी के कारखाने हैं जो लड़कों को स्वार्थ का, जरूरतो का, नुमाइश का, अक- र्मण्यता का गुलाम बनाकर छोड देते हैं और लुत्फ यह है, कि यह तालीम भी मोतियो के मोल बिक रही है। इस शिक्षा की बाजारी कीमत शून्य के बराबर है, फिर भी हम क्यो भेड़ो की तरह उसके पीछे दौडे चले जा रहे है ? अंग्रेजी शिक्षा हम शिष्टता के लिए नहीं ग्रहण करते । इसका उद्देश्य उदर है । शिष्टता के लिए हमे अंग्रेजी के सामने हाथ फैलाने की जरूरत नहीं । शिष्टता हमारी मीरास है, शिष्टता हमारी घुट्टी मे पडी है । हम तो कहेंगे, हम जरूरत से ज्यादा शिष्ट है। हमारी शिष्टता दुर्बलता की हद तक पहुँच गयी है । पश्चिमी शिष्टता मे जो कुछ है, वह उद्योग और पुरुषार्थ है । हमने यह चीजें तो उसमे से छोटी

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