<brरहना चाहिए । अगर हम एक राष्ट्र बनकर अपने स्वराज्य के लिए उद्योग करना चाहते है तो हमे राष्ट्र भाषा का प्राश्रय लेना होगा और उसी राष्ट्र-भाषा के बस्तर से हम अपने राष्ट्र की रक्षा कर सकेगे । आप उसी राष्ट्र भाषा के भिन्न है, और इस नाते आप राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं। सोचिये, आप कितना महान् काम करने जा रहे है। आप कानूनी बाल की खाल निकालनेवाले वकील नहीं बना रहे है, आप शासन-मिल के मजदूर नहीं बना रहे हैं, आप एक बिखरी हुई कौम को मिला रहे हैं, आप हमारे बन्धुत्व की सीमाअो को फैला रहे है, भूले हुए भाइयो को गले मिला रहे है। इस काम की पवित्रता और गोरव को देखते हुए, कोई ऐसा कष्ट नही है, जिसका आप स्वागत न कर सके । यह धन का मार्ग नहीं है, सभव है कि कीर्ति का मार्ग भी न हो, लेकिन आपके आत्मिक सतोष के लिए इससे बेहतर काम नहीं हो सकता। यही अापके बलिदान का मूल्य है । मुझे अाशा है, यह आदर्श हमेशा आपके सामने रहेगा। आदर्श का महत्व आप खूब समझते है। वह हमारे रुकते हुए कदम को आगे बढ़ाता है, हमारे दिलो से सशय और सन्देह की छाया को मिटाता है और कठिनाइयो मे हमे साहस देता है ।।
राष्ट्र-भाषा से हमारा क्या प्राशय है, इसके विषय मे भी मै आपसे
दो शब्द कहूँगा । इसे हिन्दी कहिए, हिन्दुस्तानी कहिए, या उर्दू कहिए,
चीज एक है। नाम से हमारी कोई बहस नही । ईश्वर भी वही है,
जो खुदा है, और राष्ट्र-भाषा मे दोनो के लिए समान रूप से सम्मान
का स्थान मिलना चाहिए। अगर हमारे देश मे ऐसे लोगो की काफी
तादाद निकल आये, जो ईश्वर को 'गाड' कहते है, तो राष्ट्र-भाषा
उनका भी स्वागत करेगी । जीवित भापा तो जीवित देह की तरह
बराबर बनती रहती है। शुद्ध हिन्दी तो निरर्थक शब्द है। जब भारत
शुद्ध हिन्दू होता तो उसकी भाषा शुद्ध हिन्दी होती । जब तक यहाँ मुसल-
मान, ईसाई, पारसी, अफगानो सभी जातियों मौजूद है, हमारी भाषा भो