रहा है । आज ड्रामे तो एक ही अंक के होते हैं। उपन्यास की मूरत उसके लघुरूप कहानी से कुछ मिलती है । ड्रामे भी अब एक ऐक्ट के हाने लगे है, जो दो ढाई घण्टो मे समाप्त हो जाते है ।
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