गामी मनुष्य नहीं,बल्कि अपना ही जैसा,साधारण बल और बुद्धि वाला
मनुष्य । नवीन ड्रामा ने इस सत्य को समझा है और सफल हुआ है।
आज के नायक और नायिकानो मे बहुत कुछ परिवर्तन हो गया है।
नवीन ड्रामा का नायक वीरता और शिष्टता का पुतला नही होता और
न नायिका लज्जा और नम्रता और पवित्रता की देवी है । ड्रामेटिस्ट उसी
चरित्र के नायक और नायिका को सृष्टि करता है, जिससे वह अपने
विषय को स्वाभाविक और सजीव बनाने में कामयाब हो सके। नवीन
ड्रामा के पात्र केवल व्यक्ति नहीं होते, वरन् अपने समुदाय के प्रतिनिधि
होते है और उस समुदाय की सारी भलाइया और बुराइया उनमे कुछ
उग्र रूप मे प्रकट होती है। शा की नायिकाए आम तौर पर त्वन्छन्द और
तेजमयी होती है। वे कठिन से कठिन परिस्थितियो मे भी हिम्मत नहीं
छोडती। प्रेम अपने व्यावहारिक रूप मे बहुधा कामुकता का रूप धारण
कर लेता है। नये डामे मे प्रेम का यही रूप दर्शाया गया है । साराश
यह कि आज का नायक कोई आदर्श चरित्र नही है और न नायिका ही।
नायक केवल वह चरित्र है जिस पर ड्रामा का आधार हो ।
नई ट्रेजेडी का रूप भी बहुत कुछ बदल गया है। अब वही ड्रामा
ट्रेजेडी नही समझा जाता, जो दुखान्त हो । सुखान्त ड्रामा भी ट्रेजेडी
हो सकता है, अगर उसमे ट्रेजेडी का भाव मौजूद हो अर्थात्-समाज
के विभिन्न अगो का सघर्ष दिखाया गया हो। कितनी ही बाते जो दुःख-
जनक समझी जाती थीं, इस समय साधारण समझी जाती है, यहाँ तक
कि कभी कभी तो स्वाभाविक तक समझी जाने लगी है । फिर नाटककार
ट्रेजेडी कहाँ से उत्पन्न करे । पुरुष का पत्नी त्याग ट्रेजेडी का एक अच्छा
विषय था, लेकिन आज की हीरोइन, जाते समय पति के मुंह पर थूककर
हंसती हुई चली जायगी और पतिदेव भी मुंह पोछ पाछकर अपनी नई
प्रेमिका के तलवे सहलाते नजर आयेंगे । काम प्रसंगो का ऐसा वीभत्स
चित्रण भी किसी के कान नहीं खडे करता, जिस पर पहले लोग आखें
बन्द कर लेते थे । तीन अंक के ड्रामों का भी धीरे धीरे बहिष्कार हो