से अगर समाज का हित होता है, तो ठीक है; वर्ना ऐसे बिजनेस मे आग लगा देनी चाहिए । सिनेमा अगर हमारे जीवन को स्वस्थ आनन्द दे सके, तो उसे जिन्दा रहने का हक है। अगर वह हमारे क्षुद्र मनोवेगो को उकसाता है, हममे निर्लज्जता और धूर्तता और कुरुचि को बढ़ाता है, और हमे पशुता की ओर ले जाता है, तो जितनी जल्द उसका निशान मिट जाय, उतना ही अच्छा।
और अब यह बात धीरे-धीरे समझ मे आने लगी है कि अर्धनग्न तस्वीरें दिखाकर और नगे नाचो का प्रदर्शन करके जनता को लूटना इतना आसान नहीं रहा । ऐसी तस्वीरें अब आम तौर पर नापसन्द की जाती हैं, और यद्यपि अभी कुछ दिनों जनता की बिगडी हुई रुचि आदर्श चित्रो को सफल न होने देगी लेकिन प्रतिक्रिया बहुत जल्द होने वाली है और जनमत अब सिनेमा मे सच्चे और सस्कृत जीवन का प्रतिबिम्ब देखना चाहता है, राजाओ के विलासमय जीवन और उनकी ऐयाशियो और लड़ाइयों से किसी को प्रेम नही रहा ।
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