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हिन्दी-गल्प-कला का विकास


होता है और इस बात का खेद होता है कि इन भले आदमियों के हृदय मे प्रेम की कितनी गलत धारणा जमी हुई है। यह विषय जितना ही व्यापक है, उतना ही उसे निभाना मुश्किल है। छिछोरी लालसा को प्रेम जैसी पवित्र साधना से वही सम्बन्ध है, जो दूध को शराब से है । प्रेम का आदर्श रूप कुछ वही है, जो मिन्चू ने अपनी कहानी मे चित्रित किया है।

यह सूची गैर मुकम्मल रह जायगी अगर हम राची के श्री राधा- कृष्णजी का उल्लेख न करे । आपकी कई रचनाएँ 'हस' और 'जागरण' मे निकल चुकी हैं और रुचि के साथ पढ़ी गई हैं। आपकी शैली हास्य- प्रधान है और बड़ी ही सजीव । प्रतिकूल दशाओं मे रहकर भी आपकी तबीयत मे मज़ाक का रङ्ग फीका नहीं होने पाया।

हमारी गल्प-कला के विकास मे युवकों ने ही नहीं कदम आगे बढ़ाया है। युवतियों भी उनके साथ कथा मिलाए चल रही है । साहित्य और समाज मे बड़ा नज़दीकी सम्बन्ध होने के कारण अगर पुरुषो के हाथ मे ही कलम रहे, तो साहित्य के एकतरफ़ा हो जाने का भय है । ऐसे पुरुष किसी साहित्य मे भी ज्यादा नहीं हो सकते, जो रमणी हृदय की समस्याओ और भावो का सफल रूप दिखा सकें। एक ही स्थिति को स्त्री और पुरुष दोनों अलग-अलग ऑखो से देख सकते हैं और देखते है । पुरुष का क्षेत्र अब तक अधिकतर घर के बाहर रहा है, और आगे भी रहेगा । स्त्री का क्षेत्र घर के अन्दर है, और इसलिए उसे मनोरहस्याॅ की तह तक पहुँचने के जितने अवसर मिलते हैं, उतने पुरुषो को नहीं मिलते। उनकी निगाहो मे ज्यादा बारीकी, ज्यादा कोमलता, ज्यादा दर्द होता है । साहित्य को सर्वाग पूर्ण बनाने के लिए महिलाओं का सहयोग लाजिमी है, और मिल रहा है। इधर कई बहनों ने इस मैदान में कदम रखा है, जिनमे उषा, कमला और सुशीला, ये तीन नाम खास तौर पर सामने आते हैं। श्रीमती उषा मित्रा बगाली देवी है, और शायद उनकी पहली रचना डेढ़-दो साल पहले 'हंस' में