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साहित्य का उद्देश्य


अनुपम अानन्द है।कहीं बनावट नहीं, जरा भी तकल्लुफ नहीं । पक्का ब्रह्मचारी, जिसे आजकल का फैशन छू तक नही गया । मिजाज मे इन्तहा की सादगी इन्तहा की खाकसारी, जो दुनिया के बन्दों को भी मानो अपने प्रकाश से प्रकाशमान कर देती है। वह युनिवर्सिटी का छात्र होकर भी गुरुकुल के ब्रह्मचारियो का-सा आचरण रखता है । और उसे खुद खबर ही नहीं कि वह अपने अन्दर कितनी साधना रखता है। इनकी कई रचनाएँ हमने पढी है और प्रकाशित की है। इनके यहाँ ओज नही है, चुलबुलापन नहीं है; पर जीवन की सच्ची झलक है, सच्चा दर्द है ओर कलाकार की सच्ची अनुभूति है। इन्होने एक बडा उपन्यास भी लिखा है, जिसमे इनकी कला पूर्ण रूप से प्रस्फुटित हुई है, और उसे पढकर यह अनुमान भी नहीं किया जा सकता कि इसका लेखक एक बाइस-तेइस वर्ष का युवक है ।

इन्हीं रत्नो मे हम प्रयाग के श्री त्रिलोकीनाथ मिच्चू का जिक्र करना आवश्यक समझते हैं। इन्होने दो साल पहले 'दो मित्र' नाम की एक मनोहर पशु-जीवन की कहानी लिखी थी। वह हमे इतनी भायी कि हमने उसे तुरन्त 'जागरण' मे प्रकाशित किया। उसके बाद आपकी एक कहानी 'पहाड़ी' नाम से 'माया' मे निकली । वह है तो छोटी-सी मगर बडी ही मर्मस्पर्शी । इस अक मे आपकी जो 'आशा' नामक कहानी छपी है, वह उनकी कला का अच्छा नमूना है। आपकी रचनात्रो मे स्वस्थ यथार्थता और सहानुभूतिपूर्णता की अनुपम छटा होती है और यद्यपि आप बहुत कम लिखते है पर जो कुछ लिखते है; अच्छा लिखते है। आपकी इस कहानी मे सयत प्रणयं का इतना सुन्दर चित्र है कि विषय मे कोई नवीनता न होने पर भी कहानी यथार्थ बन गई है। हमारे पास ६० फीसदी कहानियाँ प्रणय-विषयक ही आती है; पर प्रणय का इतना वीभत्स रूप दिखाया जाता है, या इतना अस्वाभाविक-और बिहार के युवक लेखको ने मानों इस ढ़ग की कहानियों लिखने का ठीका-सा ले लिया है-कि हमे उनको छापते संकोच