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साहित्य का इतिहास-दर्शन

५। उपरिवत्, पृ॰ ५ । ६। उपरिवत्, पृ॰ ४६ । ७। उपरिवत्, पृ॰ ५ । ८। उपरिवत्, पृ॰ ५ । ९। उपरिवत्, पृ॰ ३६ । १०। विनोद, भूमिका, पृ॰ ७ (द्वि॰ सं॰) । ११। उपरिवत्, पृ॰ १३ (")। १२। हिंदी साहित्य का इतिहास, प्र० सं० का वक्तव्य, पृ० १ । १३। उपरिवत्, पृ०७। १४। उपरिवत्, पृ० २। १५। ग्रियर्सन के इतिहास का उपर्युक्त अनुवाद, पृ.० ४८ । १६ । उपरिवत्, पृ० १२ । १७। उपरिवत्, पृ० १२। १८। उपरिवत्, पृपृ० ५३-५४ । १९ । उपरिवत्, पृ०५३। २०। उपरिवत्, पृ० ५४-५५, तुलना कीजिए- ".. हिंदी में रीति-ग्रंथों की अविरल और अखंडित परंपरा का प्रवाह केगव की 'कविप्रिया' के प्रायः पचास वर्ष पीछे चला। ..हिंदी रीति-ग्रंथों की अखंड परंपरा चिंतामणि त्रिपाठी से चली, अतः रीतिकाल का आरम्भ उन्हीं से मानना चाहिए।" रामचन्द्र शुक्ल, हिंदी साहित्य का इतिहास, सं० १९६६ का संस्करण, पृ०२८० और २८२ । २१। उपरिवत्, पृ० ५५-५६ । २२। उपरिवत्, पृ० ५६ ।