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अध्याय १३

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तासी और शिवसिंह के बाद ग्रियर्सन ने 'द माडर्न वर्नैक्युलर लिट्रेचर आव हिंदुस्तान'[] नामक हिंदी साहित्य का इतिहास अँगरेजी में प्रस्तुत किया। वह विवरणों की दृष्टि से मुख्यतः 'सरोज' पर, और अंशतः तासी के ग्रंथ पर भी, अवलंबित होने के बावजूद, पर्याप्त नई सामग्री से लाभान्वित हुआ। ग्रियर्सन ने अपने प्राग्भावी इन दोनों इतिहासकारों के प्रति अपना आभार प्रकट किया है—"गार्सां द तासी की विभिन्न कृतियाँ, मुख्यतया 'हिंदुई और हिंदुस्तानी साहित्य का इतिहास' जाँच के लिए प्रायः देखे गये हैं और जब मेरे द्वारा संकलित सूचना उनकी सूचना से भिन्न हुई है, तब मैंने ठीक तथ्य का निश्चय करने के लिए कोई भी श्रम बाकी नहीं उठा रखा है"[] तथा "एक देशी ग्रंथ जिसपर मैं अधिकांश में निर्भर रहा और प्रायः सभी छोटे कवियों और अनेक प्रसिद्ध कवियों के भी संबंध में प्राप्त सूचनाओं के लिए जिसका मैं ऋणी हूँ, शिवसिंह सेंगर द्वारा विरचित और मुंशी नवलकिशोर, लखनऊ, द्वारा प्रकाशित (द्वितीय संस्करण, १८८३) अत्यंत लाभदायक 'शिवसिंह सरोज' है।...निम्नांकित में से अधिकांश 'सरोज' के आधार रहे है।...जब सभी उपाय असफल सिद्ध हुए, अनेक बार 'सरोज' ही मेरा पथ-प्रदर्शक रहा है।"[]

सच तो यह है कि विवरणों के लिए ग्रियर्सन ने प्रायशः 'सरोज' का अनुसरण किया है और बहुधा इस ग्रंथ का शाब्दिक अनुवाद कर दिया है—ठीक आशय समझे बिना भी। ग्रियर्सन की पुस्तक के हिंदी अनुवादकर्त्ता ने इसके अनेक उदाहरण दिये हैं—

"गुमान मिश्र ने प्रसिद्ध नैषधचरित का हिंदी पद्यानुवाद 'काव्य-कलानिधि' नाम से प्रस्तुत किया था। इस अनुवाद की प्रशंसा करते हुए सरोजकार लिखता है—'पंचनली, जो नैषध में एक कठिन स्थान है, उसको भी सलिल कर दिया।' इसका जो अनुवाद ग्रियर्सन ने किया है, उसका हिंदी रूपांतर यह है—'इन्होंने पंचनलीय पर, जो नैषध का एक अत्यन्त कठिन अंश है, सजिल नाम की एक विशेष टीका लिखी।' प्रियर्सन को इस संबंध में संदेह था। अतः उन्होंने इस सलिल पर यह पाद-टिप्पणी दे दी है—'अथवा शिवसिंह का, जिनसे मैंने यह लिया है, यह अभिप्राय है कि उन्होंने पंचनलीय को बिलकुल पानी की तरह स्पप्ट कर दिया है।"

चतुरसिंह राजा के संबंध में शिवसिंह ने लिखा है—'सीधी बोली में कवित्त हैं।' उदाहरण से स्पष्ट शिवसिंह का अभिप्राय खड़ी बोली से है। ग्रियर्सन ने सीधी बोली का अनुवाद 'सिंपुल स्टाइल' किया है।

इसी प्रकार शिवसिंह ने नृप शंभु कवि के संबंध में लिखा है—'इनकी काव्य निराली है।' सरोज में काव्य सर्वत्र स्त्रीलिंग में प्रयुक्त हुआ है। ग्रियर्सन ने निराली को ग्रंथ समझ लिया है।"[]

तिथियों के संबंध में भी, अन्य प्रामाणिक सामग्री के अभाव में, ग्रियर्सन को सामान्यतः सरोज का ही आश्रयण करना पड़ा है। फिर, जैसा किशोरीलाल गुप्त ने सरोज संबंधी अपने अनुसंधानकार्य के सिलसिले में पाया है, "ग्रियर्सन ने सरोज के 'उ॰' का अर्थ 'उत्पन्न' करके सरोज में दिये संवतों को जन्म-काल माना है। सर्वेक्षण से जिन संवतों की जाँच संभव हो सकी है, उनमें से अधिकांश उपस्थिति-संवत् सिद्ध हुए हैं।"[] किंतु ग्रियर्सन ने स्वयं भी यह संकेतित किया है—"शिवसिंह बराबर तिथियाँ देते गये हैं और मैंने उनको सामान्यतया पर्याप्त ठीक पाया है। हाँ, वे नियमतः प्रसंग-प्राप्त

  1. 'द माडर्न वर्नैक्युलर लिट्रेचर आव हिंदुस्तान' पहले 'द जर्नल आव द रायल एशियाटिक सोसायटी आव बंगाल', भाग, १, १८८८ के विशेषांक के रूप में प्रकाशितः; १८८९ में सोसायटी, के द्वारा ही कलकत्ता से, पुस्तकाकार, प्रकाशित; किशोरी लाल गुप्त द्वारा 'हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास', के नाम से हिंदी में 'स-टिप्पण अनुवाद', हिंदी प्रचारक, वाराणसी, १९५७; इसी से उद्धरण आदि दिये गये हैं।
  2. उपर्युक्त हिंदी अनुवाद, पृ॰ ४६ ।
  3. उपरिवत्, पृ॰ ४६-४७ ।
  4. उपरिवत्, पृ॰ २०-१० ।
  5. उपरिवत्, पृ॰ ५ ।