पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/७४

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साहित्य का इतिहास दर्शन ६१ 'ऑव द वेस्ट'. इस प्रणाली का सुप्रसिद्ध उदाहरण है । जर्मनी के साहित्यिक इतिहास में ए० एच० कॉफ" का 'द स्पिरिट ऑव द एज ऑव गेटे' इस दृष्टि से उल्लेखनीय है, क्योंकि उसमें ग्रंथ-सामग्री और साहित्यिक इतिहास के तथ्यों के आधार पर साहस के साथ उद्भावनाएँ की गई हैं । इस प्रणाली का दुरुपयोग भी किया जाता है और किया गया भी है । उदाहरण के लिए, पाल माइसनर के अंग्रेजी साहित्य के बरोक-विषयक ग्रंथ में क्रिया-प्रतिक्रिया और तनाव के सरल सिद्धांत का सर्वया विवेक-रहित उपयोग किया गया है। उसमें यात्रा से लेकर तक, संस्मरण लिखने से लेकर संगीत तक, समस्त सामग्री को अस्वाभाविक रूप से सुविधा- जनक श्रेणियों में नियोजित कर दिया गया है । ये श्रेणियाँ विस्तार और संकोच, पिंड और ब्रह्मांड, पाप और पुण्य, विश्वास और तर्क की है और माइसनर इस बात पर ध्यान नहीं देता कि किसी भी युग में इन विरोधों को ढूंढ निकाला जा सकता है, या इसके विपरीत, एक ही सामग्री को सर्वथा विभिन्न श्रेणियों में व्यवस्थित किया जा सकता है। इसी प्रकार की पुस्तकें हैं मैक्स द्युत्सवाइन तथा जॉर्ज स्तेफांस्की की, जिनमें रोमांटिसिज्म की आत्मा पर विचार किया गया है। इन पुस्तकों में विद्वत्ता और अन्तर्दृष्टि का अभाव नहीं है, फिर भी ये बालू के घरौंदों से ज्यादा मजबूत नहीं हैं । ऐसी ही पुस्तकों में हर्बर्ट साइसास" की कृतियाँ भी परिगणनीय हैं, जिनमें जर्मन साहित्य में अनुभव और विचार जर्मन बरोक काव्य और शिलर पर विचार करते हुए पांडित्य का अनावश्यक प्रदर्शन किया गया है और सिद्धांतों के बाल की खाल निकाली गई है। 1 इन आध्यात्मिक प्रातिभज्ञानवादियों के दूसरे छोर पर जर्मन विद्वानों का एक एसा दल भी है जिसने जर्मन साहित्य के इतिहास को, उसके प्राणिशास्त्रीय और जातीय संबंधों की दृष्टि से, लिखने की चेष्टा की है । यदि जर्मन जाति के विषय में उनका विभाव सारतः आदर्शात्मक और, ततोधिक, रहस्यात्मक नहीं होता, तब तो हम उन्हें शताब्दी के पहले के विवादियों और छद्म-विज्ञानवादियों की भी कोटि में रख सकते थे। इसी दल के एक विद्वान्, जोजेफ डलर, " ने जर्मन साहित्य का एक नया इतिहास लिखा है उसके कथनानुसार यह इतिहास 'नीचे से' ('फ्रॉम बिलो'), तथा जातियों, प्रदेशों और जनपदों के अनुसार, लिखा गया है, और इसमें जर्मनी के विभिन्न प्रदेशों की उपजातियों की प्रवृत्तियों को अभिव्यक्त किया गया है। वस्तुतः मैडलर का मूलभूत सिद्धांत जर्मन इतिहास का एक विलक्षण दर्शन है। इस दर्शन का सार यह है कि जर्मनी का पश्चिमी भाग, जो जूलियस सीजर के समय से ही व्यवस्थित रहा है, जर्मन शास्त्रीयता में अन्तर्निहित प्राचीनता को पुनरायत्त करने का प्रयास करता रहा है । इसके विपरीत, जर्मनी का पूर्वीय भाग, जाति की दृष्टि से स्लाव प्रदेश है, जो अट्ठारहवीं शताब्दी के बाद ही सम्यक् रूप से जर्मन प्रदेश बना था । यही कारण है कि इस प्रदेश ने रोमांटिक युग के माध्यम से मध्ययुगीन जर्मनी की संस्कृति को पुनः प्राप्त करने के लिए उत्सुकता दिखाई है। डलर का कहना है कि सभी रोमांटिक साहित्यकार पूर्वीय जर्मनी के ही हैं, और यदि वे नहीं हैं, तो उन्हें सही मानी में रोमांटिक कहा ही नहीं जा सकता । नैडलर के सिद्धांत के दुर्भाग्य से, सत्य यह है कि अनेक रोमांटिक इस प्रदेश के नहीं हैं, और उसके इस कथन को नहीं माना जा सकता कि वे वास्तविक रोमांटिक नहीं हैं । किंतु नैडलर के कुछ गुणों को भी स्वीकार करना ही पड़ेगा। पहले तो उसमें चरित्र-निरूपण की प्रभावोत्पादक क्षमता है, और दूसरे यह कि उसमें स्थानिकता की ऐसी चेतना है जो प्राचीन, और बहुधा स्थानिक, जर्मन साहित्य के अध्य- यन के लिए आवश्यक सिद्ध होती है । इसके साथ यह भी उल्लेखनीय है कि बहुत कुछ उसके विभावनों के परिणामस्वरूप ही नात्सी साहित्यिक इतिहास का पथ प्रशस्त बन सका था।