अध्याय ८ पाश्चात्य साहित्यिक इतिहास :
- जर्मन
जर्मनी शास्त्र का ही नहीं, शास्त्रीयता का भी देश है था । वहाँ शताब्दी के प्रारंभ में ही विचारों के इतिहास के दर्शन के विषय में विषम मत भेद उत्पन्न हो गया था। जर्मनी को भाषा - विज्ञान की मातृ-भूमि कहा जाना है। यह देश उन्नीसवीं शताब्दी में भाषाशास्त्रीय साहित्यिक इतिहास का भी गढ़ था । किंतु बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रचलित पद्धतियों के विरुद्ध वहाँ तीव्र और सशक्त प्रतिक्रिया हुई जो, जैसा कि जर्मनी में बहुधा होता है, अतिवाद की सीमा तक पहुँच गई । 'कवि स्टेफन जार्ज और उनके अनुयायियों के दल ने, परंपरागत वैदुष्य की उपेक्षा में सबसे आगे बढ़ कर, अतीत के कुछ गिने-चुने व्यक्तित्वों की वीर-पूजा को अपना लक्ष्य बनाया और श्रम - साध्य शोध की पूर्ण अवहेलना की । विद्वानों के इस वर्ग में फ्रेडरिक गुंडोल्फ' मुख्य है । उसने 'शेक्सपियर एंड द जर्मन स्पिरिट' नामक अपनी पुस्तक में जर्मन साहित्य पर शेक्सपियर के प्रभाव का विश्लेषण करते हुए चमत्कारिता के साथ सिद्ध किया कि यह नाटक और आध्यात्मिक शक्तियों के तनाव का इतिहास है । गेटे आदि अन्य साहित्यिकों पर लिखी अपनी उत्तरवर्त्ती पुस्तकों में उसने आध्यात्मिक जीवनी की प्रणाली विकसित की और उसे तक्षणात्मक और स्थापत्यात्मक पद्धति का नाम दिया । इस पद्धति में मस्तिष्क और रचना की व्याख्या द्वन्द्वात्मक विरोधों की योजना में रख कर की गई है और इसका उद्देश्य है सजीव मनुष्य के बदले कल्पनात्मक और दन्तकथात्मक व्यक्तियों का निर्माण | गुंडोल्फ के अनुयायी अर्न्स्ट बट्रम' ने तो नीत्शे पर लिखी अपनी पुस्तक के बारे में स्वयं कहा है कि उसमें दंतकथा प्रस्तुत करने का प्रयास है । इस वर्ग के प्रतिकूल, वे जर्मन विद्वान् कहीं-कहीं कम अन्तर्निष्ठ और स्वेच्छालु हैं, जो प्राचीन साहित्यिक उपलब्धि के पुननिर्माण कार्य में शैली की समस्या के प्रति ही अपनी अभि- रुचि केन्द्रित रखते हैं । इस पद्धति में शैली का विशुद्ध वर्णनात्मक रूप में विभावन नहीं किया गया है, उसे विचार की अभिव्यंजना या निरंतर पुनरावृत्त होने वाले कलात्मक या विलक्षणं ऐतिहासिक रूप की वृष्टि से ही गृहीत किया गया है। इन विद्वानों ने अंशत: क्रोचे से प्रभावित हो कर, एक ऐसी भाषाशास्त्रीय सरणि का विकास किया है, जिसे वे आदर्शवादात्मक' कहते हैं। इसमें भाषा - शास्त्रीय और साहित्यिक सृजन के सामंजस्य का निरूपण अभीष्ट रहता है । कार्ल वोस्लर ने इस प्रकार के अध्ययन का उल्लेखनीय दृष्टान्त उपस्थित करते हुए संपूर्ण फ्रांसीसी सभ्यता की परिणति की, भाषाशास्त्रीय और कलात्मक अन्विति के रूप में, व्याख्या की है। इसी प्रकार लिओ स्पित्सर' ने अनेक फ्रांसीसी लेखकों की शैलियों का अध्ययन कर मनोवैज्ञानिक और रूपात्मक निर्णयों पर पहुँचने का प्रयास किया है । जर्मन साहित्य के अध्ये-