पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/७०

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साहित्य का इतिहास-दर्शन ५७ अस्तु, प्रश्न यह है कि आदर्श युग-विभाजन का आधार और रूप क्या हो सकता है । . यदि हम मानते हैं कि मनुष्य के राजनीतिक, सामाजिक, बौद्धिक या भाषावैज्ञानिक विकास से संपृक्त रहते हुए साहित्य का स्वतंत्र विकास होता है, और दूसरा पहले का निष्क्रिय प्रतिबिम्ब नहीं है, तो हम अनिवार्यतः इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि साहित्यिक युग विशुद्ध साहित्यिक मानदंड के सहारे निर्धारित होने चाहिए । जब हम साहित्यिक युगों की ऐसी श्रृंखला निर्णीत कर लेते हैं तभी यह प्रश्न उठ सकता है कि ये युग दूसरे मानदंडों से निर्धारित युगों से किस हद तक मेल खाते हैं । साहित्य के इतिहास का प्रत्येक युग स्पष्ट साहित्यिक आदर्शो की प्रधानता से अभिज्ञात होगा । साहित्यिक युग न्यायशास्त्रीय वर्ग के समान नहीं होता । कोई साहित्यिक कृति ऐसे किसी वर्ग का दृष्टान्त न होकर, वह अंश है, जो दूसरी कृतियों के साथ-साथ युग की धारणा का आधार बनती है । इस प्रकार युग-विशेष के इतिहास में साहित्यिक आदर्शों की एक प्रणाली के दूसरे में परिवर्तन-क्रम का रूपांकन ही प्रधान होगा । किसी युग की अन्विति सापेक्ष तथ्य है। युग-विशेष में आदशों की एक खास प्रणाली अधिकतम पूर्णता प्राप्त कर लेती है। पूर्ववर्ती आदशों के अवशेष और आगामियों के पूर्वाभास अपरिहार्य होते हैं । आदर्शों की खास प्रणाली के अस्तित्व की निश्चित तिथि निर्धारित करने में जो स्पष्ट कठिनाइयां होती हैं, और अन्तर्धाराओं की जो अनिवार्यता रहती है, उन्हीं के परिणामस्वरूप युग की सीमाओं के संबंध में इतने मतभेद दीख पड़ते हैं । महत्त्वपूर्ण ग्रंथों का आविर्भाव-काल भी पथ - चिह्न ही होता है, विभाजक रेखा नहीं । फिर भी साहित्य के इतिहास में, उसके सातत्य की असंदिग्ध वास्तविकता के कारण, आदर्शो की प्रणालियों के आविर्भाव, प्राधान्य और अन्ततः ह्रास के अंकन की महत्ता घटती नहीं । टिप्पणियाँ Louis Cazamian, L' Evolution psychologique de la litérature en Angle- terre, Paris, १९२० । RI René Wellek, "Periods and Movements in Literary History", English Institute Annual, 1940, New York, १९४१, पृ० ७३-९३ । ३। (क) Max Foerster, "The Psychological Basis of Literary Periods," Studies for William A. Read, Louisianas १९४०, पृपृ० २५४ - ६८ । (ख) Friedrich, “Der Epochebegrift im Lichte der franadsischen Préroman- tismeforschung," Neue Jahrbücher für wissenschaft und Jugend- bildung, X (1994), पृपृ० १२४-४० । Richard Moritz Meyer, "Prinzipien der wissenschaftlichen Periodenbild- ung," Euphorion VIII (1901), पुपु० १-४२ । I Herbert Cysarz, "Das Periodenprinzip in der Litteratur wissenschaft," Philosophie der Litteraturwissenschaft (सं० B. Brmatinger), Berlin, १९३०, पृपृ० १२ १२६ ।