अध्याय ६ साहित्येतिहास और विधेयवाद प्रथम विश्वयुद्ध के बाद यूरोप में साहित्यिक अध्ययन की उस विधेयवादी प्रणाली' के विरुद्ध विद्रोह हुआ, जो उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बहुशः व्यवहृत होती थी । । विधेय- वादी प्रणाली में असंबद्ध तथ्य एकत्रित किये जाते हैं । उसमें अंतर्व्याप्त मान्यता यह रहती है कि साहित्य की व्याख्या भौतिक विज्ञानों की प्रणालियों से, कार्य-कारण-मीमांसा के द्वारा, और बहिर्भूत निर्धारक शक्तियों को ध्यान में रखते हुए, होनी चाहिए । विधेयवादी प्रणाली तायँ ( Taine) की इस प्रसिद्ध घोषणा' में सूत्रबद्ध है - race, milieu, moment' बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यूरोपीय साहित्यालोचन की जो प्रवृत्ति थी, उसके विश्लेषण से यह स्पष्ट हो जाता है कि आधुनिक प्रतिक्रिया परंपरागत साहित्यिक अध्ययन के कतिपय स्फुट लक्षणों के विरुद्ध केन्द्रित है । पहला है, उथली प्रत्नान्वेषणवादिता लेखकों की जीवनियों और विवादों के सूक्ष्मतम विवरणों का 'शोध', तुलनात्मक स्थलों का अन्वेषण, और उद्गम-खनन । दूसरे शब्दों में, असंबद्ध तथ्य इस स्पष्ट विश्वास से एकत्रित किये जाते थे कि कभी-न-कभी ये ईंटें वैदुष्य के विशाल भवन के निर्माण में उपादेय सिद्ध होंगी । परंपरागत विद्वत्ता के इस लक्षण का सबसे अधिक उपहास किया गया है, किंतु अपने में यह हानिकारक नहीं है । सभी युगों में प्रत्नान्वेषी होते हैं, और उनकी सेवाएँ सावधानी से ली जायें तो काम की भी साबित होती हैं । फिर भी, यह स्मरण रखना आवश्यक है कि बहुधा इस तथ्यात्मकता * के साथ- साथ मिथ्या और विकृत ऐतिह्यता" लगी रहती है । ऐतिह्यता अतीत के अध्ययन के लिए किसी सिद्धांत या मानदंड की आवश्यकता नहीं मानती । इसमें यह धारणा भी रहती है कि वर्तमान युग शास्त्रीय प्रणालियों के द्वारा अध्ययन के योग्य नहीं है, या उसका अध्ययन संभव ही नहीं है । ऐसी निरपेक्ष 'ऐतिह्यता' साहित्य के विश्लेषण और आलोचना की सार्थकता को भी स्वीकार नहीं करती । इसका परिणाम होता है नंदतिक समस्याओं का सामना होने पर निरस्त हो जाना, आत्यंतिक निष्ठा राहित्य और फलतः मूल्यों की अराजकता । इस ऐतिह्य मूलक प्रत्नान्वेषिता का विकल्प था उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध की नंदतिकता । यह कला-कृति के वैयक्तिक अनुभव पर जोर देती है । इसकी परिणति चरम अंतर्निष्ठा में होती है । यह ज्ञान के वैसे सुव्यवस्थित संघटन को संभव नहीं बना सकती, जो साहित्यिक विद्वत्ता का लक्ष्य होता है । उन्नीसवीं शताब्दी की 'विज्ञानवादिता" ने भौतिक विज्ञान की प्रणालियों को साहित्यिक अध्ययन के क्षेत्र में स्थानांतरित करने की बहुविध चेष्टाओं के द्वारा उपर्युक्त लक्ष्य का संधान
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