अध्याय ५ ४३ सन् १८०० ई० के पहले जन्म लेनेवाले और सन् १८०० ई० के बाद मृत, लेखकों का ही विवेचन किया गया है । ऐसी स्थिति में युग मात्र सुविधाजनक शब्द है, वह किसी पुस्तक के उप- विभाजन या विषय के चुनाव के लिए ही जरूरी है । यह दृष्टिकोण, बहुधा अनजाने ही सही, वैसी पुस्तकों में अंतर्निहित रहता है, जो शताब्दियों की तिथि- रेखाओं का चेष्टापूर्वक ध्यान रखती हैं, या जो विषय विशेष पर तिथि की निश्चित सीमाएँ आरोपित करती हैं (उदाहरण के लिए १८५०-१६०० आदि), जिनकी यौक्तिकता इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है कि किसी- न- किसी प्रकार की सीमाओं की व्यावहारिक आवश्यकता तो होती ही है । पत्रा-तिथि के प्रति ऐसी निष्ठा आकर सूची निर्माण में निस्संदेह आवश्यक और उपादेय है। किंतु एतादृश युग- विभाजन का वास्तविक साहित्यिक इतिहास की दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं है । । प्रारंभ में, सामान्यतः, साहित्यिक इतिहास राजनीतिक परिवर्त्तनों के अनुसार ही विभिन्न युगों में विभक्त होते थे । इस प्रकार साहित्य को राजनीतिक या सामाजिक क्रांतियों से पूर्णतः निर्धारित मान लिया जाता था, और युग-विभाजन की समस्या राजनीतिक या सामाजिक इति- हासकारों के लिए छोड़ दी जाती थी । और, उनके द्वारा निर्दिष्ट काल-सीमाएँ आँख मूंद कर मान ली जाती थीं । यदि हम अँगरेजी साहित्य के पुराने इतिहासों को देखें, तो हम पायेंगे कि वे या तो संख्यात्मक खंडों में, एक सरल राजनीतिक आधार पर यानी अँगरेज राजाओं के राजत्व-काल के अनुसार - लिखे गये हैं। किंतु जरा ऐसे अँगरेजी साहित्य के इतिहास की कल्पना कीजिए, जो पूर्ववर्ती राजाओं की मृत्यु-तिथियों के अनुसार विभिन्न युगों में विभाजित हो । फिर कुछ पहले के अँगरेजी साहित्य में भी, उदाहरण के लिए उन्नीसवीं शताब्दी के आरंभ के साहित्य में, जहाँ जार्ज तृतीय, जार्ज चतुर्थ और विलियम चतुर्थ के राजत्व-कालों के अनुसार विभाजन अनावश्यक समझा जाता है, वहीं एलिजाबेथ, जेम्स प्रथम तथा चार्ल्स प्रथम के राजत्व-कालों में कृत्रिम भेद मानने की परंपरा आज भी एक हद तक बनी हुई है । इसके विपरीत यदि हम अपेक्षाकृत इधर के अँगरेजी साहित्य के इतिहासों पर विचार करें तो पायेंगे कि पत्रानुसारी शताब्दियों या राजाओं के राजत्व-कालों पर निर्भर पुराने विभा जन लुप्तप्राय हैं, और उनका स्थान ले लिया है युगों की श्रेणियों ने, जिनके नाम मानव मस्तिष्क के परस्पर नितांत भिन्न क्रिया-कलापों से गृहीत हैं। इन साहित्यिक इतिहासों में अब भी 'एलिजाबेथन', 'विक्टोरियन' आदि ऐसे युग-नाम व्यवहृत होते हैं, जो विभिन्न राजत्व-कालों के पुराने परिचायक संकेत हैं, किंतु अब बौद्धिक इतिहास की योजना के अंतर्गत उन्होंने नवीन अर्थ ग्रहण कर लिये हैं। अब इन नामों का व्यवहार बहुत कुछ इसलिए किया जाता है कि एलिजाबेथ और विक्टोरिया अपने युगों को प्रतीकित करती मानी जाती हैं | संप्रति तिथि- क्रमानुसारी युग-सीमाएँ, जो सिंहासनारोहण और मृत्यु की तिथियों से निर्धारित होती हैं, साहित्यिक इतिहासकार के द्वारा पूर्णतः ध्यान में नहीं रखी जातीं । उदाहरण के लिए, एलिजाबेथ-युग में वे लेखक भी सम्मिलित कर लिये जाते हैं, जिनका रचना-काल एलिजाबेथ की मृत्यु के चालीस-पचास साल बाद तक है; इसके विपरीत ऑस्कर वाइल्ड यद्यपि कालक्रमानुसार विक्टोरिया -युग का लेखक था, फिर भी शायद ही कोई साहित्यिक इतिहासकार उसे 'विक्टो- रियन' लेखक कहता है । इस प्रकार इन नामों ने बौद्धिक और साहित्यिक इतिहासों के प्रसंग में एक ऐसा निश्चित अर्थ ग्रहण कर लिया है, जो उनके राजनीतिक स्रोत से भिन्न है ।
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