अध्याय ५ ३६ और इन योजनाओं को स्वयं इतिहास से प्राप्त किया जा सकता है। हम इसके उदाहरण के रूप में उन समस्याओं में से कुछेक को ले सकते हैं, जो साहित्यिक इतिहास की समस्याएँ हैं । कला-कृतियों के अतिशय स्पष्ट संबंध - उनके स्रोत और प्रभाव - बहुधा निरूपित होते हैं और ये ही परंपरागत वैदुष्य के आधार बने रहे हैं । इस प्रकार के साहित्यिक इतिहास के लेखन में विभिन्न कृतियों के रचयिताओं के बीच साहित्यिक संबंध स्थापित करना आवश्यक होता है, उससे चाहे सीमित अर्थ में साहित्यिक इतिहास लिखा जा सके या नहीं। रेमांड हैवेन्ज की एक पुस्तक है Milton's Influence On English Poetry ।" इसमें उसने मिल्टन के प्रभाव को प्रदर्शित करने के लिए विशद प्रमाण एकत्र किये हैं। उसने न केवल मिल्टन के उन विचारों का ही निर्देश किया जो अट्ठारहवीं शताब्दी के अँगरेजी के कवियों में पाये जाते हैं, बल्कि इस युग की कृतियों के सावधान अध्ययन के बाद समानताओं का भी विश्लेषण किया है । इसके बाद से समानताओं के अन्वेषण की प्रणाली विद्वानों के बीच खूब ही प्रचलित हुई, यद्यपि इधर उसका व्यापक विरोध हुआ है । इस प्रणाली में तब तो खतरे बहुत ही बढ़ जाते हैं, जब अनुभव रहित अध्येता इसका उपयोग करने लगते हैं । पहली बात है कि समानताएँ सचमुच समानताएँ हों, निरी अस्पष्ट सदृशताएँ न हों, जिन्हें गुणित करके प्रमाण सिद्ध कर दिया गया हो । शून्य की संख्या कुछ भी हो, वह शून्य ही रहेगा । दूसरी बात यह है कि समानताएँ पृथक् रूप से समानताएँ हों, अर्थात् इसका प्रायः निश्चय हो जाना चाहिए कि उनका समाधान यह नहीं है कि उनका स्रोत एक ही है, किंतु इसके लिए यह आवश्यक है कि शोधक का साहित्यिक ज्ञान बहुत व्यापक हो; फिर यह भी देखना आवश्यक है कि समानताओं में अपना जटिल संस्थान है या कि दो-एक शब्दों या कथानक रूढ़ियों का सादृश्य मात्र है । समानताओं के अध्ययन विषयक कार्य बहुसंख्यक हैं और साधारणतः सर्वथा अनुपादेय हैं । यह देखकर तो बहुत आश्चर्य होता है कि ऐसे विद्वान् भी इस प्रकार का प्रयास करते हैं, जिनसे यह आशा की जा सकती है कि वे युग विशेष की सामान्य विशेषताएँ– प्रचलित उक्तियाँ, रूढ़ उपमाएँ, समान वर्ण्य वस्तु के कारण उत्पन्न समानताएँ — आसानी से पहचान लेंगे । इस प्रणाली में दोष जो हों, यह संगत प्रणाली जरूर है और इसे पूर्णतः अस्वीकृत नहीं किया जा सकता । स्रोतों के सावधान अध्ययन से साहित्यिक संबंधों की स्थापना संभव होती है। " इन संबंधों में उद्धरण या चोरी और मात्र प्रतिध्वनियाँ बहुत ही कम महत्त्व की होती हैं - ये अधिक से अधिक संबंध के तथ्य की स्थापना भर करती हैं, किंतु साहित्यिक संबंधों की समस्याएँ स्पष्टतः अपेक्षया बहुत जटिल होती हैं और उनके समाधान के लिए ऐसे आलोचना- त्मक विश्लेषण की आवश्यकता होती है, जिसके लिए समानताओं का अन्वेषण एक गौण साधन- मात्र है । इस प्रकार के अधिकांश अध्ययनों में इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता । साहित्य की दो या उससे अधिक कृतियों के संबंधों का लाभदायक विवेचन तभी संभव है, जब हम साहित्यिक विकास की योजना के भीतर उन्हें उचित प्रसंग में देखें । कला-कृतियों के संबंधों की अतीव कठिन समस्या यह है कि दो पूर्णताओं का अध्ययन आवश्यक होता है, जिन्हें प्रारंभिक अध्ययन के लिए ही खंड-खंड कर देखा जा सकता है, बाद में नहीं । १५ जब तुलना सचमुच ही दो पूर्णताओं पर केंद्रित रहती है, तो हम साहित्यिक इतिहास की एक तात्त्विक समस्या के संबंध में किसी निष्कर्ष पर पहुँच पाते हैं - वह समस्या है मौलिकता की ।
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