साहित्य का इतिहास वर्शन निर्देश किया जा सकता है, उसे प्रेम और ज्ञान, श्रेण्य और रूमानी आदि परस्पर व्यावर्तक विभावन-युग्मों के बीच कठोर विरोध मान कर साहित्यिक प्रवृत्तियों को इन युग्मों के बीच सरल परिवृत्ति के रूप में, निरूपित करने की चेष्टा नहीं करनी चाहिए । साहित्य का इतिहास, अधिक व्यंजक रूप होगा साहित्यिक इतिहास, जरूरी है कि साहित्यिक भी हो और इतिहास भी। किंतु क्या यह संभव है ? क्या ऐसा होता है ? कुछेक ही आधुनिक विद्वानों ने इन समस्याओं पर विशद रूप से विचार किया है । होता तो यही है कि साहित्य का इतिहास सामाजिक इतिहास, अथवा साहित्य में व्यक्त तथा उदाहृत विचारों का इतिहास, अथवा काल-क्रम से उल्लिखित विशिष्ट कृतियों के संबंध में भावनाओं तथा निर्णयों का इतिहास मात्र होता है । पश्चिम के उन्नीसवीं शताब्दी के और हिंदी के वर्तमान साहित्यिक इतिहास शास्त्र को सरसरी निगाह में देखने पर भी इस कथन का पूर्ण समर्थन हो जाता है । पश्चिम के विभिन्न साहित्यों के इतिहासों तथा हिंदी-साहित्य के इतिहास का विवेचन करते हुए हमने इस पर पूरा प्रकाश डाला है । इसके विपरीत विद्वानों का एक वर्ग है जो मानता है कि साहित्य प्रथमतः और प्रधानतः एक कला है, किंतु उनकी कठिनाई यह है कि वे इतिहास नहीं लिख पाते ! वे अलग-अलग लेखकों पर परस्पर असंबद्ध निबंध प्रस्तुत करते हैं, और उनकी चेष्टा होती है कि विवेचित लेखकों को प्रभावित करनेवाले स्रोतों से निबंधों को शृंखलित कर दें, किंतु यह स्पष्ट है कि उनमें वास्तविक ऐतिहासिक विकास के विभावन का अभाव रहता है । अँगरेजी के इघर के साहित्यिक इतिहासकारों में अतिशय महत्त्व के अधिकारी, ओलिवर एल्टन, ने स्पष्ट ही कहा है कि उनकी कृति 'वस्तुतः एक समीक्षा है, एक प्रत्यक्ष आलोचना, न कि एक इतिहास || जार्ज सेंट्सबेरी ने भी यद्यपि कहने को लिखा है इतिहास' ही, तथापि वह उस अर्थ में 'परिशंसा " ही है, जिस अर्थ में वाल्टर पेटर ने उसका उद्भावन और प्रयोग किया है। जिन कुछेक विद्वानों ने सिद्धांत रूप में स्पष्टतः यह प्रतिशा की भी है कि वे साहित्य को एक कला मान कर उसका इतिहास प्रस्तुत कर रहे हैं, वे भी व्यवहार में उन्हीं सरणियों में से किसी एक पर चले हैं, जिन पर सामान्यतः साहित्यिक इतिहासकार चलते आये थे । उदाहरणार्थ, एडमंड गॉस" कहते तो हैं कि वे 'अँगरेजी साहित्य की गति' निरूपित करेंगे और 'अँगरेजी साहित्य के विकास की भावना प्रदर्शित करने की चेष्टा करेंगे, किंतु व्यवहारतः उनकी पुस्तकों में विभिन्न लेखकों और तिथिक्रमानुसार निर्दिष्ट इनकी कुछ कृतियों पर व्यक्त विचार ही मिलते है। गॉस ने बाद में स्वीकार भी किया था कि वे सेंट बूव से बहुत ही प्रभावित हुए थे, जो जीवनीमूलक शब्दांकन में परम निपुण थे । अस्तु, तात्पर्य यह है कि अधिकतर साहित्य के इतिहास या तो सभ्यता के इतिहास हैं या आलोचनात्मक निबंधों के संग्रह । कला के रूप में साहित्य के विकास के निर्धारण का, बड़े पैमाने पर, नहीं के बराबर प्रयास हुआ है, तो इसके अनेक समझ में आ सकनेवाले कारण हैं । एक तो यह है किं कलात्मक कृतियों प्रारंभिक विश्लेषण क्रमिक तथा सुश्रृंखल रूप से नहीं हुआ है । साहित्य-शास्त्र ने अभी ऐसी पद्धतियों का आविष्कार नहीं किया है, जिनके सहारे हम किसी कंला कृति को संकेतों की प्रणाली के रूप में वर्णित कर सकें। हम या तो परंपरागत
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