अध्याय ५ पाश्वात्य साहित्यिक इतिहास दर्शन: प्राचीन और आधुनिक साहित्यिक इतिहास क्या है ? इतिहास नामों की तालिका मात्र नहीं है। वह केवल घटनाओं और तिथियों को भी सूची नहीं है। और, साहित्यिक इतिहास भी लेखकों की ऐसी तिथिमूलक तालिका नहीं है, जिसमें उनकी कृतियों का विवरण और सारांश-मात्र हो । साहित्यिक इतिहासकार के लिए यह तो आवश्यक है ही कि उसे प्राग्भावी साहित्य का पाठ सुलभ हो, क्योंकि साहित्यिक इतिहास तब तक लिखा ही नहीं जा सकता जब तक समृद्ध पुस्तकालय और सुव्यस्थित सूचीपत्र न हों; किंतु यदि साहित्यिक इतिहासकार चाहता है कि स्वयं उसकी कृति तिथिमूलक सूचीपत्र से कुछ अधिक और भिन्न हो, तो उसे कार्य-कारण-संबंध और सातत्य का ज्ञान, सांस्कृतिक परिवेश का कुछ बोध और उस व्यवस्था में यत्किंचित् प्रवेश होना ही चाहिए, जिसमें अंशीभूत कलाएँ अंगीभूत सभ्यता से संबद्ध रहती हैं। उसके साधन में स्थिति- स्थापकता आवश्यक है । मनोवैज्ञानिक या समाजशास्त्रीय कारणत्व के बने-बनाये सिद्धान्तों का परिणाम केवल यही होता है कि समस्त सुलभ सामग्री कार्य-कारण की पहले से ही बनी धारणाओं के अनुरूप तोड़ी-मरोड़ी जाय । किंतु, दूसरी ओर साहित्यिक इतिहासकार के साधन इतने लचीले भी नहीं होने चाहिए कि प्रत्येक नवीन तथ्य के लिए एक सर्वथा भिन्न प्रकार का कारण प्रस्तुत हो जाय – एक लेखक की रचनाओं का समाधान तो उसे प्रभावित करनेवाली परंपरा से हो, दूसरे का उसकी व्यक्तिगत कुंठा से, तीसरे का उसके रचना-प्रदेश से और चौथे का युग-प्रवृत्ति से । जो इतिहासकार प्राप्य सामग्री को नवीन अवबोध और प्रकाश के साथ उपस्थित करना चाहते हैं, उनमें अनेकानेक परस्पर भिन्न तत्त्वों के, अवधान और विवेक के साथ, उपयोग की क्षमता होनी चाहिए : विकास की अपनी परंपराओं और नियमों के साथ कलाएँ होती हैं; सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और मनोवैज्ञानिक तत्त्व होते हैं; कॉल और स्थान से संबद्ध आकस्मिकताएँ रहती हैं; और ऐसी क्रियाएँ तथा प्रतिक्रियाएँ होती हैं, जो सामान्यतः संस्कृति मात्र और विशेषत: किसी लेखक की किसी रचना के निर्माण को निर्धारित करती हैं । साहित्यिक इतिहासकार के पास पर्याप्त रूप से समृद्ध आन्वीक्षिकी रहनी चाहिए। तभी वह इन विभिन्न कारणभूत तत्त्वों का विचारणीय प्रत्येक प्रवृत्ति और लेखक के प्रसंग में, उपयोग कर सकता है, और कभी एक प्रकार के कारण और कभी दूसरे पर बल दे सकता है, पर यह भूले बिना कि सरलतम सांस्कृतिक तथ्यों में भी कारणत्व की जटिलता वर्त्तमान रहती है । यदि साहित्यिक इतिहासकार कल्पना के उस जीवन की आढघता और विविधता के प्रति अन्याय करने से बचना चाहता है, जिससे साहित्य का उद्भव होता है, तो उदाहरण के लिए
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