२६ ४६५। सुव्रत-न० । ४६६। सुव्रतदत्त न० । ४६७ सूरिन० । ४६८ सूर्यघर-न० । ४६६। सेन्तुत न० । ४७० । सेन्दुक या सेन्दूक न० । सोढगोविन्द - -न० । ४७१। ४७२ | सोल्लोक-क०; सेल्हूक, मेल्होक, सोलूक, मोल्होक इन्हीं के भिन्न नाम-रूप प्रतीत होते हैं; न० । ४७३ | ( श्री ) हनुमत् सू०; सु०; खण्डप्रशस्ति और हनुमन्नाटक के रचयिता; न० । हरि-त० । ४७४। ४७५ । हरिश्चन्द्र-सदुक्तिकर्णामृत ( ५, २६, ५) के एक अज्ञात कवि के श्लोक में सुबन्धु और कालिदास के साथ उल्लेख । साहित्य का इतिहास दर्शन ४७६। हरिदत्त न० । ४७७॥ हरिवंश न० ४७८ श्रीहर्ष या कविपण्डित श्रीहर्ष —सू०; १२वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के; कन्नौज-नरेश जयचंद्र के समकालीन; नैषधीयचरित और खण्ड- नखण्डखाद्य के रचयिता । ४७६ | श्रीहर्षदेव-क०; सू०; सातवीं शताब्दी के; रत्नावली आदि के रचयिता और बाण, मयूर आदि के प्रतिपालक । ४८० | हलायुध–सू०; लक्ष्मणसेन के महामात्य और फिर महाधर्माध्यक्ष; अनेक पुस्तकों के रचयिता, संप्रति केवल ब्राह्मणसर्वस्व प्राप्य । ४८१॥ हृषीकेश ०। ४५२ हीरोकन०। " सदुक्तिकर्णामृत में जिन कवियों के छंद संगृहीत हैं, उनकी ऊपर प्रस्तुत तालिका " से संस्कृत के ज्ञात-गौण कवियों की संख्या का अनुमान मात्र किया जा सकता है। अन्य समस्त सुलभ स्रोतों से ऐसे नाम संकलित किये जायें, तो संख्या सहस्राधिक होगी और, यदि और कुछ नहीं, तो उनके एक और बहुधा एकाधिक छंद तो मिल ही जायेंगे। यह भी उल्लेखनीय है कि इनमें से अधिकांश का निश्चित समय ज्ञात न रहने पर भी उन्हें युग-विशेष में सहज ही रखा जा सकता है । तब संस्कृत साहित्य का वास्तविक इतिहास लिखा जा सकेगा, जिसमें समय निर्धारण पर ही सारी शक्ति लगा देने के बदले प्रवृत्ति, शैली आदि की दृष्टि से अध्ययन की चेष्टा होगी । १ अब तक, निश्चय ही, संस्कृत साहित्य का परिपूर्ण इतिहास नहीं लिखा गया है; जो इतिहास- ग्रंथ हैं वे एकाङ्गी और आंशिक हैं । आफेस्त, टामस, पीटरसन आदि ने गौण कवियों की तुलनात्मक तालिकाएँ तैयार की हैं, किन्तु उनका ध्यान भी समय-निर्धारण पर ही केंद्रित रहा है । इन कवियों का युग-विशेष का प्रतिनिधित्व करनेवाले कवियों के रूप में, अध्ययन और मूल्यांकन नहीं किया गया है।
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