पृष्ठ:साहित्य का इतिहास-दर्शन.djvu/१६४

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अध्याय १३ १५४

कवियों के नाम व विषय ' पृष्ठ पंक्ति नम्बर कंधों मैन भूपति के रथ के सुचक चले ु ३८ ७ ३ कोऊ हेम सागे चढ़ी वानि सकसीसे कहै ४२ २५ ९ कोऊ कहे कुच कड्चन कुम्भ भर २१ & कंधौ उर आनंद के मन्दिर शिखर बिन्द ५२ १७ १३ कैधौ विवि सुन्दर सुहाये चक्रवाक बैठे प्र्ट है १६ कैधौ गिरि श्रृंगनि में तास के वितन तने ६७ २१ २्‌ कड्चन लतासी चपलासी नाह नेह फांसी ७२ ८ १ कञ्चन के पल्‍लव में छोटी बड़ी लीक मानों ७६ श्८ २ कहां मृदुहास कहां सुखद सुवास कहां 8६५ १५ प्र कञ्नचन खचित भूमि पतन्नन प्रकाश चारु १०२ श्८ ३४ कव्चन बदन तेरो तामें दाग शीतला के १०६ २४ ७ कैधौ कमला के गेह कमल की लाल माल १०७ १७ २ कंधौ मुक्ताहल है पहल के आबदार १११ है है कुसुम के सार कंधों काशमीरी कंसरि सो १२६ & है केसरि निकाई किशलय कीरताई १२६ १५ भर केसरिके सने चन्द के बीच “ हे १३७ प्‌ १० केसरि कपूर कन्दकीन्हें युति मन्‍न्द अति १३७ १७ १२ कोरेहिये दुगकोरही रावरे १३८ श्८ १ कैसो सुधासर मांभ फूल्यो है कमल नील १४० २१ ३ कंधौँ सृधाधरज्‌ दुहुँ ओर ! १४३ २० २ कंधों सूर पण्डित असुर गुरु दोऊ दिज्षि १४४ ६ है कमल नफीक हैँ सँवारं सूघरी के है १५८ ष ११ काजरते कारे ऊनियारे डोरे मतवारे १५६ १३ १६ कंजयुति भंजन है खंजन के गंजन है १५९ १६ १७ कैधौँ रूप सागर में आंच बडवागिनि की श्छ८ २१ ढं कंधों फन्‍दा दोहरा के चन्द्रमा के फाँसिबे को १९७. २४ १६ कैधौ' श्याम घन में प्रकाश है प्रभाकरको २०४ १४५ २

कंसे है सिवार जैसे इ्याम मखतूलतार २०८ रे ७

, कालिन्दी कौ धार निरधार है अधारगण २०८ ष प् कंधो सुधारत चाखिबे को २१३ १५ ५ कैधौ शशि कालिमा उतारि मेलि पाछे धरी २१३ २०... ६ कंधौ नाग गिड्री दे फण उकसाय बैठथों २१६९ -२१ ड केसरिसी केतकी सी चम्पक चमीकरसी २२५ ११ २३ ' शीश जटा धरि नन्‍्दन में ५ १४५ १८ सुनियत कटि सो तो सूक्षम नियरतें ही ३१. २१ ११ शिशुताके भाजिबे को गहरी गुफा है केधौ रद, १७ ४५

शंकर के मृख में हलाहल की डर मानौ 'द४. १८ ४