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(९) हिंदी के गौण कवियों का इतिहास इतिहास संपूर्ण विस्तार का सर्वेक्षण, अनुशीलन और मूल्यांकन है; शोध विस्तार के खंड-खंड का उद्घाटन और विश्लेषण करता है और आलोचना पथ-चिह्नों पर प्रकाश केंद्रित करती है। तीनों एक दूसरे के लिए आवश्यक और पूरक होते हुए भी स्वतंत्र महत्त्व के अधिकारी हैं । साहित्यिक इतिहास का विषय भी यदि विस्तार है, तो महान् लेखकों से अधिक महत्त्व उन गौणों ( Minors ) का है, जिनसे विस्तार निर्मित होता है। हिंदी साहित्य के इतिहासों में इन महान् गौणों की उपेक्षा हुई है और इसका कारण यह है कि शोध ने अपने वास्तविक कर्त्तव्य का पालन नहीं किया है वह उन पथ-चिह्नों तक ही सीमित रहा है, जो वस्तुतः आलोचना के विषय हैं । यदि इसका उत्तर यह है - और नहीं है, ऐसा नहीं कहा जा सकता -- कि अभी तो पथ-चिह्न हो पूर्णतः उद्घाटित नहीं है, तो इतिहास को तबतक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी, जबतक शोध को अपना कार्य पूरा कर लेने का अवकाश नहीं मिलता । अधिक पीछे तक जानेवाले विस्तार को छोड़ दें, आज से सौ, दो सौ वर्षों पूर्व के हिंदी के सहस्राधिक गौण लेखक इस प्रकार नामशेष हो गये हैं कि हिन्दी के शोधकर्ता को पुस्तकालयों के अनुसंधान कक्षों से निकलकर क्षेत्र कार्य में कुशल गुप्तचरों की तरह लगना होगा । आगे के पृष्ठों में हिंदी के कुछ गौण लेखकों तथा उनकी कृतियों की तालिकाएँ प्रस्तुत हैं । विश्वविद्यालयों या संस्थाओं को तबतक बृहत् और विशाल साहित्येतिहासों की योजनाएँ स्थगित कर देनी चाहिए, जबतक इन लेखकों और कृतियों के प्रामाणिक विवरण और संपादित पाठ सामने नहीं आ जाते । केंद्रीय सरकार के शिक्षा विभाग का ध्यान इस आवश्यकता की ओर गया है और, जहाँ तक हमें मालूम है, गौण कृष्ण-भक्त कवियों तथा रीतिवादियों की कृतियों के संकलन और प्रकाशन की योजना विचाराधीन है। जबतक यह या ऐसी अन्य योजनाएँ, पूरी नहीं हो जातीं, तबतक व्यक्तियों द्वारा लिखित साहत्येतिहासों से ही हमें संतुष्ट रहना पड़ेगा, अन्यथा पिष्टपेषण और मंडूक-स्फीति को ही हम बृहत् बनाकर आत्म- प्रवंचना के शिकार होंगे । नीचे प्रस्तुत तालिका में अधिकतर ऐसे ही कवि हैं, जिन्होंने मुक्तकों की रचना की है। इनमें अनेक ऐसे होंगे, जिनके मुक्तक कभी पुस्तकाकार संगृहीत नही हुए होंगे। इसी कारण संस्कृत में सूक्ति-संग्रह और हिंदी में 'हजारा' साहित्य ' की आवश्यकता समझी गई थी । 'हजारा' साहित्य का महत्त्व अबतक हमारे शोध कर्त्ता समझ नही पाये हैं । आज तो हिंदी के सैकड़ों कवियों के मुक्तक केवल 'हजारा' साहित्य में ही प्राप्य रह गये हैं, और उन्हीं से इनका संकलन किया जा सकता है । हमने अपनी पृथक् अध्ययन-सरणि के निर्देशनार्थं परमानंद सुहाने के नखशिख - हजारा से ऐसे गौण कवियों के नाम और उनके मुक्तक छंदों की प्रथम पंक्तियाँ उद्धृत की हैं, जिन्हें