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साहित्यालाप


में बाप मेरा' अथवा 'आप के हुक्म से' के स्थान में 'ब हुकम आपके' करने से कहीं भाषा दूसरी हो सकती है ? वही 'बाप',वही मेरा', वही 'हुक्म' और वही 'आप' दोनों प्रकार के उदाहरणों में विद्यमान हैं । लिखने की प्रणाली को बदलने अथवा उस में किसी अन्य भाषा के शब्दों का प्रयोग करने से मुख्य भाषा के अस्तित्व में कदापि अन्तर नहीं आ सकता। उर्दू दूसरी भाषा तभी गिनी जा सकती है जब उसके प्रेमी उसके सारे क्रियापदों को बदल दें और साथ ही हिन्दी व्याकरण के अनुसार बने हुए कारक चिह्नों को भी बदल दें। यह अब, इस समय, होना असम्भव जान पड़ता है। यदि कोई कहे कि जिसे हम शुद्ध हिन्दी कहते हैं वह भी उर्दू ही है तो हम उसे उन्मत्त अथवा भूमिष्ट कहेंगे! फ़ारसी और अरबी के शब्दों से मिली हुई उर्दू-नामधारिणी हिन्दी अभी कल उत्पन्न हुई है । १६वीं शताब्दी के पहले उसके साहित्य का नाम तक न था। परन्तु नवीं शताब्दी ही में हिन्दी में कविता होने लगी थी और बारहवीं शताब्दी के तो ग्रन्थ विद्यमान हैं। अतएव उर्दू साहित्य के कम से कम ५०० वर्ष पहले जिस भाषा के साहित्य का पता लगे वह भाषा उर्दू से उत्पन्न हुई किस प्रकार समझी जा सकती है। उर्दू-नामधारिणी हिन्दी में फ़ारसी और अरबी के शब्दों की अधिकता होने और देवनागरी अक्षरों को छोड़ कर फ़ारसी अक्षरों में उसके लिखे जाने से जो लोग उसे एक भिन्न भाषा समझते हैं वे बहुत बड़ी भूल करते हैं। वह कदापि भिन्न भाषा नहीं। वह भी सर्वथा हिन्दी हा है। संस्कृत