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देवनागरी-लिपि का उत्पत्ति-काल

संख्या जब बढ़ गई तब चतुर मनुष्यों ने सङ्केतरूपी वर्ण बनाये । यद्यपि इस बात का कोई दृढ़ प्रमाण नहीं मिलता कि इस देश में भी कभी मिश्र और चीन की जैसी चित्ररूपिणी लिपि का प्रचार था, तथापि कई पुरातत्व के पण्डितों का अनुमान है कि था ज़रूर। इसके प्रमाण में वे देवनागरी अक्षरों-विशेष करके अशोक के समयबालो-का सादृश्य रोज़मर्रा की व्यावहारिक चीज़ों और मनुष्य के अवयवों से बतलाते हैं । वे कहते हैं कि रज्जु (रस्ती) का चिह्न या चित्र 'र' है; पाणि ( हाथ के पज्जे ) का चिह्न 'प' है; और गतिसूचक पैरों का चिह्न 'ग' है। वर्ण शब्द से यह अनुमान होता है कि भारतवासी मिश्र को रङ्ग-बिरङ्गी चिनलिपि से परिचित थे। ऐसी लिपि में रङ्ग काम आता था । इसीसे जब प्राचीन आर्यों ने अपने यहां लिपि के सङ्केत निश्चित किये तब उन्होंने उन सङ्केतों का नाम वर्ण और उनके समुदाय का नाम वर्णमाला रक्खा।

योरप के प्रसिद्ध संस्कृतवेत्ता मोक्षमूलर साहब ने संस्कृत-भाषा का इतिहास लिखा है। उसमें आपने इस विषय का बहुत विचार किया है कि इस देश की देवनागरी वर्णमाला की सृष्टि कब हुई और उसे भारतवासी आर्यों ने कहां से पाया । आपकी राय है कि यह वर्णावली प्राचीन सेमिटिक अक्षरों से निकली है। पर इस देश के पुरातत्वज्ञ पण्डितों को यह बात मान्य नहीं । देवनागरी वर्णमाला संसार की समस्त वर्णमालाओं से अधिक पूर्ण, अधिक नियमानुसारिणी और अधिक शृङ्खला-