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साहित्यालाप
 



प्रस्ताव करें तो उससे सिर्फ उनकी स्वार्थ-परता सिद्ध होती है, और कुछ नहीं। जो सर्वथा निर्दोष है, जिसका प्रयोग हिन्दुओं के शास्त्रों में है, संस्कृत-साहित्य का अक्षय्य भाण्डार जिसकी बदोलत अभी तक थोड़ा बहुत विद्यमान है, उसको छोड़ कर और कोई वर्णमाला हमारे लिए हितकर और उपयोगी नहीं।

सुनते हैं, बनारस-वासी पादरी एडविन ग्रीब्ज़ हिन्दी अच्छी जानते हैं। आपने हिन्दी में दो एक निबन्ध भी लिखे हैं। एप्रिल, मे और जून १९०५ के एकीकृत " हिन्दुस्तान रिन्यू" में आपने एक लेख अँगरेज़ी में प्रकाशित कराया है। आपकी राय में छापे के लिए तो देवनागरी वर्णमाला उपयोगी है, पर लिखने के लिए नहीं। आप कहते हैं कि देवनागरी लिखने में देर लगती है। इसलिए लिखने में कैथी अक्षरों का प्रयोग होना चाहिए। आपकी राय में यदि कैथी अक्षरों का प्रयोग हो तो एक तिहाई समय की बचत हो और काग़ज़ पर से कलम को बिना उठाये लिखनेवाला उसे दौड़ाता चला जाय। कैथी के लिए आप इतनी बातों की आवश्यकता समझते हैं---

(१) प्रत्येक वर्ण का एकही रूप निश्चित हो।

(२) यदि दो वर्णों में समानता के कारण पढ़ने में भूल होने का डर हो तो दो में से एक का रूप कुछ बदलदिया जाय ।

(३) संयुक्त-वर्ण बना लिये जायँ और उनसे काम लिया जाय।

(४) हस्व और दीर्घ स्वरों का प्रयोग किया जाय ।