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साहित्यालाप

कर अभी सिर्फ़ व्यापक लिपि की बात उठाई है। ऐसे काम क्रम ही क्रम हो सकते हैं। नीचे की सीढ़ी पर पैर रखकर ही आदमी ऊपर की सीढ़ी तक पहुँच सकता है। एकदम उछल कर वह ऊपर नहीं जा सकता।

योरप के भिन्न भिन्न देशों में—हज़ारों कोस दूर टापुओं तक में—जब एक लिपि का प्रचार है तब हिन्दुस्तान में एक लिपि क्यों सम्भव नहीं? सर्वथा सम्भव है। जिनके धर्म्मग्रन्थ संस्कृत में हैं उनमें, अर्थात् हिन्दुओं में, एक लिपि बहुत ही कम परिश्रम और प्रयत्न से प्रचलित हो सकती है। जिनकी भाषा संस्कृत से निकली हुई है और जिनकी लिपि देवनागरी लिपि से मिलती हुई है उनके लिए एक लिपि, अर्थात् देवनागरी स्वीकार कर लेना तो और भी कम कष्टसाध्य है। डाक्टर ग्रियर्सन ने हिन्दुस्तान की भाषाओं और बोलियों के विषय में अभी हाल ही में जो एक बहुत बड़ा ग्रन्थ, कई भागों में, लिखा है उसमें इस बात का हिसाब दिया गया है कि हिन्दुस्तान के तीस करोड़ आदमियों में से कितने आदमी कौन भाषा बोलते हैं। जो लोग संस्कृत से सम्बन्ध रखनेवाली भाषायें बोलते हैं, उनका हिसाब इस तरह है—

हिन्दी

पूर्वी और पश्चिमी हिन्दी६,२८,००,०००
माध्यमिक हिन्दी३,१२,००,०००
पञ्जाबी१,७०,००,०००
राजस्थानी१,९०,००,०००
१३,००,००,०००