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साहित्यालाप

वो कराना चाहते थे उसका वे चित्र बना देते थे। यदि उन्हें पेड़ लिखना होता था तो वे पेड़ का चित्र बना देते थे, यदि हाथी लिखना होता था तो हाथी का, यदि मनुष्य लिखना होता था तो मनुष्य का। इस तरह की वर्णमाला का प्रचार ईजिपृ अर्थात् मिश्र देश में बहुत समय तक था। वहां की इस प्राचीन लिपि में लिखी गई अनेक शिला-लिपियाँ योरप के अजायबघरों और पुस्तकालयों में सयत्न रक्खी हुई हैं। ऐसी लिपियां प्राचीन मन्दिरों और समाधियों में अब तक पाई जाती हैं। जैसे जैसे इस तरह की लिपि अधिक काम में आती गई, वैसे ही वैसे लोग, जल्दी के कारण, वस्तुओं के चित्रों की पूर्णता की तरफ कम ध्यान देते गये । जैसे, यदि उन्हें आदमी का चित्र बनाना होता तो वे आदमी के हाथ, पैर, धड़ और सिर का स्थूल आकार मात्र लिख देते । इस तरह अनेक वस्तुओं के चित्र, धीरे धीरे, यहां तक बिगड़ गये कि उनके आकार से उनका ज्ञान न होने लगा। यह बात चीन और जापान की वर्णमाला से सिद्ध है । इन देशों की वर्णमालायें भी वस्तु-चित्रण के आधार पर बनी हुई हैं।

कुछ समय तक इस तरह की वर्णमाला से काम चला, पर गुणवाचक शब्द और विशेषण लिखने में गड़बड़ होने लगी। लाल और काले घोड़े को लोग लाल और काले रङ्ग से लिख देते । पर विद्वान् और मूर्ख मनुष्य का चित्र बनाने में उन्हें सुभीता न होता। क्रियाओं के रूप लिखने में भी उन्हें कठिनता का सामना करना पड़ता । इससे प्रयोज्य शब्दों की