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साहित्यालाप
करे। उसका धर्म है कि इस मृत भारतवर्ष को एक भाषा-
रूपी सञ्जीवनी शक्ति के द्वारा सजीव करे। ऐसा न करना, और न करके इस मृतक के मृण्मय पिण्ड पर पदाघात करते रहना घोर कृतघ्नता है ! हमारा देश हिन्दुस्तान है, अतएव हमारी स्वाभाविक भाषा हिन्दी है। हिन्दी और हिन्दुस्तान का सम्बन्ध अविच्छिन्न है। देखें, हमारे देश-बन्धु इस सम्बन्ध को दृढ़ करने के लिए कब कमर कसते हैं।
[नवंबर १९०३
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