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साहित्यालाप



का प्रयत्न करें तो सफलता होने में कोई सन्देह नहीं। एक भाषा होना सारे देश का कार्य है। इसमें सारे देश की भलाई है । यह समझ कर प्रत्येक देश-भक्त का धर्म है कि वह काया-वाचा मनसा इस विषय में उद्योग करें। उद्योग करने से क्या नहीं होता ? उद्योगी पुरुष आल्पस् और हिमालय की चोटियों पर चढ़ जाते हैं, उत्तरी ध्रुव की यात्रा कर आते हैं, स्वेज़ के समान प्रचंँड नहर खोद लेते हैं और लङ्का को हिन्दुस्तान से रेल-द्वारा जोड़ देने का भी प्रयत्न सोचते हैं । उद्योगी पुरुष की सहायता ईश्वर भी करता है। उसे किसी न किसी दिन अवश्य यश मिलता है। ईश्वर से हमारी प्रार्थना है कि वह हम लोगों को इस सम्बन्ध में उद्योग करने की बुद्धि और उत्तेजना दे !

[ अक्टोवर १९०३

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देवनागरी लिपि के गुण ।

देश की उन्नति उसका भाषा की उन्नति पर अवलम्बित रहती है। जिस देश की भाषा अच्छी दशा में है, वह देश उन्नत हुए बिना नहीं रहता । विचारों को प्रकट करने का मार्ग भाषा ही है। जिस देश में सुविचारों का अभाव है उस देश की अवस्था कभी नहीं सुधरती और सुविचारों का, कला-कौशल-सम्बन्धी ज्ञान का और ब्यापार-विषयक तारतम्य आदि का, देश में भाषा ही के द्वारा प्रचार होता है। इसीसे देश को उन्नत करने के लिए भाषा की उन्नति ही मुख्य साधन है।