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आजकल के छायावादी कवि और कविता


ये इतनी मोटी मोटी बातें भी इनके ध्यान में नहीं आतीं। कविता का सबसे बड़ा गुण है उसकी प्रासादिकता। वही जब नहीं तब कविता सुन कर श्रोता रीझ किस तरह सकेंगे और उसका असर उनपर होगा क्या खाक़ !

यदि कोई यह कह कि ये नवयुवक कवि परमात्मा के रहस्यों का परोक्ष पर प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करके अपनी कविता में अपने उन अनुभवों को प्रकट करते हैं तो ऐसा कहना या समझना उस परमात्मा की बिडम्बना करना है।

लेख बढ़ रहा है। इससे अब इसका संवरण करना पड़ेगा। यहां तक जो कुछ लिखा गया उसकी पूर्ति के लिए अच्छी और बुरी कविता के अब केवल दो चार उदाहरण देना शेष है। ये उदाहरण हम उन्हीं सामयिक तथा अन्य पुस्तकों से देंगे जो हमारे सामने हैं और जो अभी हाल ही में प्रकाशित हुई है । पाठक यह न समझे कि ये उदाहरण ढूंढ़ ढूंढ़ कर परिश्रमपूर्वक चुने गये हैं।

एक कविता का नाम है-"तब फिर? " ज़रा इस नाम की विलक्षणता पर भी ध्यान दीजिएगा । कविता नीचे देखिए-

तब फिर कैसा होगा मात!

धारे धीरे पक्षहीन जब हो जावेगा यह द्विज-दल ?

डाल डाल में, शाल शाल में उड़ न सकेगा उच्छृङ्खल ।

म्लान पुष्प सा झर जावेगा जब यह भी निर्बल, निश्चल ।

नहीं गा सकेगा मृदु-स्वर से प्रथम-रश्मि का स्वागत-कल ?