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आजकल के छायावादी कवि और कविता


"आवेहयात" के लेखक प्राफेसर आज़ाद ने संस्कृत भाषा में लिखे गये साहित्य-शास्त्र-विषयक ग्रन्यों का अध्ययन न किया था । पर थे वे प्रतिभावान, सहृदय और काव्यप्रेमी । इसीसे उन्होंने छोटी छोटी दा हो सतरों में सत्कविता का कैसा अच्छा निरूपण किया है --निरूपण क्या किया है,परमात्मा से उसकी प्राप्ति के लिए प्रार्थना की है । वे कहते हैं---

है इल्तिजा यही कि अगर त करम करे ।

वह बात दे ज़बां मै के दिल पर असर करे॥

देखिए, उन्हें माल, मुल्क,प्रभुता, महत्ता किसीको भी इच्छा नहीं । इच्छा सिर्फ यह है कि जो कुछ वे कहें उसका असर सुननेवाले के दिल पर पड़े। सत्कविता का सबसे बड़ा गुण-सब से प्रधान लक्षण-यही है।

सत्कवियों की वाणी में अपूर्व शक्ति होती है। वही श्रोताओं और पाठकों को अभिलषित दिशा की ओर खींचती और उद्दिष्ट विकारों को उन्माज्जित करती है। असर पैदा करना-प्रभाव जमाना-उसीका काम है । सत्कवि अपनी कविता के प्रभाव से रोते हुओं को हंसा सकता है, हंसते हुओं को रुला सकता है, भीरुओं को युद्ध-धीर बना सकता है, वीरों को भयाकुल और त्रस्त कर सकता है, पाषाण-हृदयों के भी मानस में दया का संचार कर सकता है । वह सांसारिक घटनाओं का इतना सजीव चित्र खड़ा कर देता है कि देखने वाले चेष्टा करने पर भी उसके ऊपर से आंख नहीं उठा सकते ।