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साहित्यालाप


बात समझ ही में न आवेगी उसका दाद देगा कान ? न उससे किसीका मनोरजन ही होगाः न उसे सुनकर सुनने वाला कवि का अभिनन्दन ही कर सकेगा और जब उसके हृदय पर कविता का कुछ असर ही न होगा तब वह कवि को कुछ देगा क्यों? अन्य विचार करने की बात है कि वर्तमान छायावादी कवियों की कविता में श्रोताओं को मुग्ध करने योग्य गुण हैं या नहीं। इसपर, आगे चलकर, हम सप्रमाण विचार करेंगे।

यहां पर यह कहा जा सकता है कि छायावादी कवि दुसरी को प्रसन्न करने के लिए कविता-रचना नहीं करते। वे अपनी ही मनस्तुष्टि के लिए कविता लिखते हैं। इसपर प्रश्न हो सकता है कि फिर वे दूसरों से अपनी कविता को समालोचना के अभिलाषी क्यों होते हैं ? मान लीजिए कि ये लोग बड़े अच्छे कवि है; परन्तु यदि ये अपनी कविता की रचमा अपनी ही आत्मा को प्रसन्न करने के लिए लिखते हैं तो उससे संसार को क्या लाभ ? अपनी चीज़ किसे अच्छी नही लगती? तुल़सीदास ने कहा ही है-"निज कवित्त कंदिला न नीक।" ऐसे कवियों के विषय में कविवर रुद्रभट्ट की एक उक्ति बड़ी ही मनोहारिणी हं-

सत्यं सन्ति गृहे गृहे सुकवयो येषां बचश्चातुरी

स्वे हम्य कुलकन्यकेव लभते जाते गौरवम् ।

दुष्प्राप्यः स तु कोऽपि कोविंदपतियप्रद्वानसमाहिरणां

पण्यस्त्रीव कलाकलापकुशला चेतांसि ह क्षमा।।