एक ही शब्द या वाक्य से कई अर्थ निकलते हैं । ऐ सें अर्थो को
वाच्य, लक्ष्य और उपड़्गय संज्ञा है। वाच्य से तो साधारण अर्थ का ग्रहण होता है; लय और व्यङ्गय से विशेष अशी का।
पर रहस्यमयी कविता को प्राप इन अर्थों सें परे समझिए । एक अलङ्कार का नाम है-महोक्ति। जहाँ वगय विषय के सिवा किसी अन्य विषय का भी बोध साथ हा साथ होता जाता है ,वहां यह अलङ्कार माना जाता है । महाकवि ठाकुर की कविता इस अलङ्कार के भी भीतर नही आती। संस्कृत भाषा में कितने ही काव्य ऐसे हैं जो आधोपान्त द्वयर्थक है। वर्णन हो रहा है हरि का, पर साथ हो अर्थ हर का भी निकलता जाता है। काव्य लिखा गया है राघव के चरित-चित्रण- सम्बन्ध में; पर करता चला जा रहा है पागडयां के भी चरित का चित्रण। इस तरह के भी काव्यों की कथा के भीतर कविवर ठाकुर की कविता नहीं भाती। उस तरह को अटपटी कविता आती किसके भीतर है यह बात कवियों का यह किङ्कर नहीं बता सकता। बताने का सामर्थ्य उसमें नहीं। जिसे इस कविता का रहस्य जानना हो वह बंगला पढ़े, कुछ समय तक उस भाषा में लिखे गये काव्यो का अध्ययन करे, तब यदि वह इसकी गुप्त, गूढ़ या छायामयी कविता पर कुछ कह सके तो कहे। रहीम पर कुछ कहना हो तो राम का चरित गान करो; अशोक पर कुछ लिखना हो तो सिकन्दर के जीवन-चरित की चर्चा करो-यह अघटनीय घटना पर लिखना साधारण कवियों का काम नहीं। पर
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