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साहित्यालाप

उसकी जगह रोमन लिपि को दे दी जाय हो सारी मुसीबतें हल हो जायें। इन उदारहृदयों और परदुःश्वकातरों की दलीलों की असारता एक नहीं अनेक बार खाल कर दिखाई जा चुकी है और इनकी प्रत्येक युक्ति का खण्डन किया जा चुका है। पर हम लोगों के ये अकारण-हिताकांक्षी फिर भी अपना राग आलापना बन्द नहीं करते । अब इनके इम आलाप को ध्वनि बङ्गाल की गवर्नमेंट के कानों तक भी पहुँची है और उसने इन्हें दाद देने का भी विचार किया है।

कुछ दिन हुए, कलकत्ता-गैजट में एक मन्तव्य प्रकाशित करके बङ्गाल की गवर्नमेंट ने बङ्गवालियों से पूछा है कि तुम्हारे सदोष वङ्गाक्षरों का बहिष्कार करके यदि प्रारम्भिक पाठशालाओं में रोमन अक्षरों का प्रचार कर दिया जाय तो तुम्हें कोई एतराज तो न होगा। इस पर वे लोग क्या कहेंगे या क्या‌ राय देंगे, इस बात को जाने दीजिए। विचार केवल इस बात का कीजिए कि वङ्गाक्षरों की उत्पत्ति देवनागरीही अक्षरों से है। जब उनपर रोमन-लिपि के आक्रमण का सूत्रपात हो‌ रहा है तब देवनागरी-लिपि भी कब तक अपनी और मना सकेगी और फ़ारसी-लिपि भी क्या उसके आक्रमण से बच सकेगी? इसीसे मेरा निवेदन है कि इन दोनों हो लिपियों को रोमन के आक्रमण से एक सा भय है।

इस चढ़ाई का समाचार सुन कर हमें सजग हा जाना चाहिए और भावी भय से अपनी जातीय लिपि को बचाने का उपाय यथाशक्ति करना चाहिए। सरकार तो एक हिसाब से