वर्णमाला शिक्षा-प्रचार के मार्ग को प्रशस्त तो करेगी नहीं, उसमें बबूल के काँटे अवश्य बखेरेगी। पादरी साहब, रहने दीजिए आप अपना यह कारुण्य-कोलाहल ।
रही यह बात कि रोमन-लिपि में भारतीय भाषायें शुद्ध शुद्ध लिखी जा सकती हैं या नहीं, सो अनेक विद्वान् अनेक लेखों द्वारा इस लिपि के दोष दिखला चुके हैं और यह सिद्ध कर चुके हैं कि इसके प्रचार से हमारा काम नहीं चल सकता । न हमारी भाषायें वर्तमान रोमन-लिपि ही में अच्छी तरह लिखी जा सकती हैं और न इस परिवर्तित लिपि ही में । नोल्स साहब की वर्णमाला में कहीं 'हल' का चिह्न नहीं। "ज्योतिर्गमय" को आपने अपनी लिपि में " Jyotir gamaya" लिखा है । पर आपका-r-र का वोधक है, र् का नहीं । आपने तो शायद वैदिक संस्कृत का एक छोटा सा उदाहरण यह दिखलाने के लिए दिया है कि वेद तक हमारी लिपि में लिखे जा सकते हैं। पर उन दो चार शब्दों को भी आप सही सही नहीं लिख सके । वैदिक संस्कृत में एक वर्ण है। उसका स्थानग्राही कौन सा वर्ण रोमन में होगा ? अच्छा, उदात्त और अनुदात्त के सूचक चिह्न आपकी लिपि में कहां हैं ? ज्ञ का उच्चारण कोई न्य करता है, कोई द+न+य, कोई ज यँ । इन सब उच्चारणों के बोधक वर्ण अपनी लिपि में बताइए। और भाषाओं की बात जाने दीजिए, आप अपनी लिपि में सही सही संस्कृत ही लिख कर दिखा दीजिए। यदि आप यह सिद्ध भी कर दें कि अपनी लिपि में आप सब कुछ लिख सकते हैं तो भी हम अपनी ही लिपि