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साहित्यालाप

विदेशो भाव, शब्द और मुहावरे ग्रहण करने में केवल यह देखना चाहिए कि हिन्दी उन्हें हजम कर सकती है या नहीं, उनका प्रयोग खटकता तो नहीं; वे उसकी प्रकृति के प्रतिकूल तो नहीं। मकान, मिजाज, मालिक विदेशीभाषा के शब्द है; पर हिन्दी ने उन्हें आत्मसात् कर लिया है-उन्हें उसने हजम कर लिया है। उन्हें स्त्रियां और बच्चे तक, पढ़े लिखे और अपढ़, सभी बोलते हैं। इस कारण विदेशी होकर भी वे अब स्वदेशी हो गये हैं। उनको अव सर्वथा हिन्दी शब्द-मालिका के अन्तर्गत ही समझना चाहिए। इसी तरह नोट, नम्बर, बोतल और कौंसिल आदि शब्द भी विदेशी होकर भी स्वदेशी बन गये हैं। करने से भी, उन के वहिष्कार की चेष्टा कभी सफल नहीं हो सकती। अतएव विदेशी भाषाओं के जो शब्द अपनी भाषा में खप गये हैं वे सब हिन्दीं ही के हो गये हैं और आगे जो खपते जायंगे ये भी हिन्दी ही की मिलकीयत होते जायंगे। हिन्दो जीती जागती भाषा है। दूसरोंकी दी हुई चीज़ को ले लेने का अधिकार उसे स्वयं प्रकृति ही ने दे रक्खा है। उसे कोई छीन नहीं सकता। इस दशा में यह कहना कि यह शब्द हमारी भाषा का नहीं, इससे हम इसका वहिष्कार कर देंगे, प्रकृति के प्रबल प्रवाह को रोकने का व्यर्थ परिश्रम करना है।

हां, एक बात अवश्य है। वह यह कि जो भाव या जो मुहावरे हिन्दी में न खप सकते हों, अर्थात् जो खटकने वाले हों-जिन्हें हिन्दी हज़म न कर सकती हो-उनका प्रयोग