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साहित्यालाप


की अवस्थिति को स्वीकार किया है और प्रकारान्तर से उपनिषदों ही के “एकमेवाद्वितीयं ब्रह्म" संशक महावाक्य की सत्यता सिद्ध कर दिखाई है । क्योंकि आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व पृथक् न स्वीकार करने पर भी, उसका तत्त्वाद्ध तवाद किसी अखण्ड और अद्वितीय सत्ता की गवाही दे रहा है। काशी की नागरी-प्रचारिणी सभा के प्रयत्न से हैकेल के इस ग्रन्थ का अनुवाद हिन्दी में हो गया, यह बहुत अच्छा हुआ। यदि अध्यापक बसु के ग्रन्थों का भी अनुवाद हो जाय तो हम लोगों में से अनभिज्ञों और सन्दिहानों को अपने स्वरूप का कुछ अधिक ज्ञान हो जाय। वे यह तो जान जायं कि हम किनकी सन्तान है; हमारे पूर्वजों ने ज्ञान की कितनी प्राप्ति की थी; ज्ञानोन्नति में किसी समय हमारा देश कहां तक पहुँचा था।

विदेशी भाषाओं में ऐसे सहस्रशः ग्रन्थ विद्यमान हैं जिनके अनुवाद से हमारी जाति और हमारे देश को अपरिमेय लाभ पहुँच सकता है। परन्तु, खेद की बात है, उस तरफ हमारा बहुत ही कम ध्यान है । जो समर्थ हैं और जो अंगरेज़ीदाँ बनकर, अनेक बातों में, अंगरेज़ों की नकल करना ही अपना परम धर्म समझते हैं उनको कृपा करके किसी तरह जगा दीजिए। उन्हें अपने साहित्य की उन्नति से होनेवाले लाभ बता दीजिए और उनको इस बात की प्रेरणा कीजिए कि वे अंगरेज़ी तथा अन्य भाषाओं के आदरणीय ग्रन्थों का अनुवाद करके अपनी भाषा के साहित्य की वृद्धि करें। साथ ही इस बात पर भी