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नई रोमन-लिपि के प्रचार का प्रयत्न

कोई देश शिक्षा में सर्वोन्नत हो सकता है ? इससे तो यही सिद्ध होता है कि शिक्षोन्नति के और भी कोई कारण हैं।

अच्छा, योरप को जाने दीजिए। जापान को लीजिए । वहां तो रोमन-लिपि का प्रचार नहीं ? वहां की लिपि तो देवनागरी और रोमन दोनों ही से बदतर है न ? फिर वहां‌ भारत की अपेक्षा शिक्षा का अधिक प्रचार क्यों है ? पादरी साहब इसका क्या जवाव रखते हैं ?

अपने ही देश का एक उदाहरण क्यों न ले लीजिए । मध्य-प्रदेश में देवनागरी लिपि का प्रचार है और वङ्गाल में बंँगला का। बंँगला लिपि देवनागरी से अच्छी नहीं। वङ्ग-भाषा उच्चारण सम्बन्धी दोष भी है। पर मध्य-प्रदेश की अपेक्षा बङ्गाल अधिक शिक्षित है। यह क्यों ? इससे तो उल्टा यह साबित होता है कि सदोष लिपि और सदोष भाषावाले प्रान्त ही शिक्षा में अधिक उन्नति करते हैं। मदरास के विषय में भी यही बात कही जा सकती है।

पादरी साहब जिले “ National Progress " (जातीय या राष्ट्रीय उन्नति ) कहते हैं उसका रोमन अक्षरों से क्या सम्बन्ध, यह समझ में नहीं आता । अपना वस्त्र-परिच्छद, अपना धर्म, अपनी भाषा और अपनी लिपि के स्वीकार से राष्ट्रीय उन्नति को सहायता पहुंँचती है या बहिष्कार से यदि बहिष्कार से, तो नोल्स साहब कुछ ऐसे उदाहरण दे कृपा करें जिनसे यह प्रमाणित हो कि योरप के किन किन देशों में इस तरह के बहिष्कार किये गये हैं। क्योंकि योरप आज-