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साहित्यालाप


होने पर, एक व्यापक भाषा के अभाव में, गोखले की बात आइयर न समझेंगे और गोखले आइयर की! देशपाण्डे का मुंह ताकते बरुवा रह जायंगे और बरुवा का देशपाण्डे ! चैटर्जी का वक्तव्य सुनकर भी देसाई बहरे बने बैठे रहेंगे और देसाई का वक्तव्य सुनकर चैटर्जी ! ऐसी दशा में प्रत्येक भाषा के ज्ञाता जुदाजुदा दुभाषिये नियत करने से भी क्या आपका काम चल सकेगा? ऐसे कितने दुभाषिये आप रखेंगे ? हर वक्तात या हर बात का अनुवाद किसी एक भाषा में यदि आप कराने बैठेंगे तो घण्टों का काम हप्तों में भी ख़तम न होगा । तब तक यदि मन्त्रणा किसी छिड़नेवाले युद्ध के विषय में हुई तो शायद शत्रु को गोला-बारी और बम-वर्षा भी देश की किसी सीमा पर होने लगे। अतएव इस प्रकार का अस्वाभाविक आडम्बर एक दिन भी न चल सकेगा। परन्तु यदि आप किसी एक ऐसी भाषा को सीख लेंगे जिसे सब जानते हों और ऐसे मौकों पर उसीमें अपने विचार व्यक्त करेंगे तो आपका सब काम चुटकी बजाते हो जायगा और विश्रृंखलता पास न फटकेगी।

अतएव सारे देश में एक प्रधान भाषा का प्रचार अब भी अत्यन्त आवश्यक है और आगे भी अत्यन्त आवश्यक होगा; और वह भाषा हिन्दी के सिवा और कोई नहीं हो सकती। यह बात अब सर्वसम्मत और सर्वमान्य सी हो चुकी है।

६-साहित्य की महत्ता।

ज्ञान-राशि के सञ्चित कोष ही का नाम साहित्य है।