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कवि सम्मेलन

बोलियों की कवितायें पढ़ी जायँगी उस समय अन्तरिक्ष में देवगण भी शायद अपने अपने विमानों में बैठे हुए कविता-श्रवण करते दिखाई देंगे। अस्तु।

कवियों की महिमा अचिन्त्य और अनिर्वचनीय है। वे क्या नहीं कर सकते? वे सर्वगामी, सर्वज्ञ, सर्वसमर्थ और सर्वकार्य्यपटु होते हैं। अतएव प्रतिभाशाली और अप्रतिभ, उद्भट और अनुद्भट अश्लीलताद्वेषी और शृङ्गाररसपोषी, सदल और निर्दल—सभी कवियों को इस किङ्कर का साज्जलिवद्ध प्रणाम। कवि कोई ऐसी वैसी चीज़ नहीं। उसे तो एक लोकोत्तर विभूति समझना चाहिए। राजतरङ्गिणीकार कल्हण की उक्ति है—

कोऽन्यः कालमतिक्रान्तं नेतुं प्रत्यक्षतां क्षमः
कवि-प्रजापतींस्त्यक्त्वा रम्यनिर्म्माणशालिनः

जनवरी १९२६